सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना

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सोमवार, 25 अप्रैल 2011

'मेरे लिए पिता ही मां थे और बाप भी'

आर्चाय जानकी वल्लभ शास्त्री की कहानी उन्हीं की जुबानी

कुछ माह पहले महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने एक इंटरव्यू में अपने बारे में कुछ-कुछ बताया था। पेश है उनसे जुड़ी एक छोटी-सी कहानी उन्हीं की जुबानी -
शास्त्री जी कहने लगे- 'गया से भी 40 मील आगे एक गांव है मैगरा। फिर उसे समझाते हुए अंग्रेजी में स्पेलिंग भी बताते हैं, एम ए आई जी आर ए। शायद पुरातनकाल में यह मायाग्राम रहा हो, और समय के साथ मैगरा बन गया हो। गौतम बुद्ध वाली जगह से हूं।
मां को मैंने कभी नहीं जाना। मेरी मां बचपन में ही मुझे छोड़ कर चली गई। एक दिन घर में लकड़ी नहीं थी, उन दिनों लकड़ी पर भोजन पकता था। पिताजी कहीं जा रहे थे, मां ने उनसे कहा, किसी को बोल दो लकड़ी दे जाएगा। नहीं तो भोजन नहीं बन पाएगा। क्रोध से पिताजी ने कहा कि सामने जो लकड़ी है उसी को जला लो। वह लकड़ी पूजा में प्रयोग के लिए किसी चीज की थी। काफी कीमती। ... दूसरे दिन मां को सांप ने काटा। मां चली गई। 5 वर्ष का रहा होऊंगा मैं।
मेरे पिताजी महापुरुष थे। मेरे पिता इतने बहादुर निकले कि लोगों के लाख कहने और समझाने पर भी उन्होंने दूसरी शादी नहीं की। किसके लिए? मेरे लिए। लड़के के लिए। अखंड मंडलाकार रह गए। पूजनीय थे। चले गए पिताजी, मैंने पिता का मंदिर बनवा लिया। वो देखो सामने। ये मंदिर मैंने अपने पिता की याद में बनवाया है। मैं कभी मंदिर में नहीं गया और न ही किसी देवता को पूजा। मेरे भगवान मेरे पिता हैं। उन्होंने कभी मेरा नाम नहीं लिया। बस एक ही बार बोले, तब चलें न जानकी वल्लभ? और चल पड़े! दुनिया में ऐसा पिता कहां मिलता है! सबसे बड़ी बात है कि यों कहने के लिए पिता होते हैं, वो नहीं थे, बकायदा पिता थे! बहुत बड़े विद्वान थे। छोटी उम्र में मां चली गई। मेरा जीवन चौपट हो गया था। मातृविहीन बालक था मैं। किसी के कहने पर शादी के लिए तैयार नहीं थे। किसी काम के लिए तैयार नहीं थे। सब काम मेरा गड़बड़ा गया। उन्होंने मां की भूमिका भी निभाई। मेरे लिए मेरे पिता ही मां थे और बाप भी। जब मैं मुजफ्फरपुर आ गया तो उनको भी अपने पास ले आया।''

प्रस्‍तुति - एम. अखलाक

(यह खबर आचार्य जानकीवल्‍लभ शास्‍त्री के निधन पर दैनिक जागरण मुजफ्फरपुर में छप चुकी है)

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