सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना

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गुरुवार, 4 जून 2009

शहर में बज रहा साढ़े बारह

यों तो आपने लोगों के चेहरे पर बारह बजते देखा-सुना होगा, लेकिन इन दिनों 'शहर के चेहरेÓ पर भी साढ़े बारह बज रहे हैं। जी हां, यह मुजफ्फरपुर सरैयागंज टावर है। शहर के बीचो-बीच। टावर जो याद दिलाता है जंग-ए-आजादी के दीवानों की शहादत। जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा हर क्षण शहर को गौरवान्वित करती है। और टावर पर लगी चारों दिशाओं में घडिय़ों की सूइयां शहर को समय का बोध कराती हैं। ये घडिय़ां अब सिर्फ कहने को हैं। इसमें हर समय साढ़े बारह बजता नजर आता है। शहर भले ही समय की रफ्तार के साथ भाग रहा है, लेकिन घडिय़ों की सूइयां ठहर गयी हैं। अस्त-व्यस्त इस चौराहे पर हर सुबह शहर आने-जाने वाले इस घड़ी में दिखायी देते समय का मतलब समझना चाहते हैं। एक जमाना था जब शहर के कई बुजुर्ग हवाखोरी के लिए निकलते थे तो इसी घड़ी से अपनी घड़ी का वक्त मिलाया करते थे। तब शहर की दिनचर्या निर्धारित करती होगी यह घड़ी। मगर वह जमाना अब कहां? आज के बच्चे जो प्राथमिक कक्षाओं में ही घड़ी देखना सीख जाते हैं, हर रोज स्कूल जाते और लौटते हुए बच्चों के लिए यह घड़ी मजाक बन कर रह गयी है। इसकी महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सुदूर गांवों से आने वाले अधिकांश लोग शहर में प्रवेश करने से पहले इस 'इकलौतीÓ घड़ी को देखकर दिनचर्या तय करते थे। चौराहे की इस घड़ी को घड़ीसाज ने बड़े जतन से बनाया होगा। छोटी-बड़ी सूइयों के कील-कांटों को ठीक किया होगा, ताकि शहर को समय का बोध होता रहे। लेकिन इस चौराहे से दिनभर गुजरने वाले हुक्मरान और राजनेता इसे ठीक कराने में असमर्थ हैं! टावर की उपेक्षा या अनदेखी कोई नयी बात नहीं है। पिछले दिनों यहां कुछ शरारती तत्वों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा पर कालिख पोत दी थी। वहीं एक बार यहां अंकित शहीदों व सेनानियों के नाम भी मिटने लगे थे। तब जिला प्रशासन ने लंबे-चौड़े दावे किये थे, लेकिन परिणाम सिफर रहा। कहने को एक सरकारी बैंक ने इस टावर के सुन्दरीकरण के नाम पर अपनी होर्डिंग्स भी लगा रखा है, लेकिन उसे भी इसकी परवाह कहां? क्या कोई इस ऐतिहासिक धरोहर की सुध लेगा?
गौरतलब है कि इस टावर पर तिरहुत प्रमंडल के 101 सेनानियों के नाम अंकित हैं। 1952 में बने इस शहीद स्मारक टावर का उद्घाटन प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने किया था। इसका निर्माण स्वतंत्रता सेनानी पंडित भूरामल शर्मा के नेतृत्व में हुआ था। टावर पर लगी यह घड़ी चाबी से चलती है, लेकिन वर्षों से बंद पड़ी है। फिलहाल यह चाबी नगर निगम के दो दिग्गजों के पास है। पंडित भूरामल शर्मा स्मृति सभा के संस्थापक पंडित संतोष शर्मा इस टावर की उपेक्षा पर कई पत्र केन्द्र व राज्य सरकार को लिख चुके हैं। पत्र के जवाब भी आये, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

रिपोर्ट - एम. अखलाक

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