सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना

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बुधवार, 11 नवंबर 2009

भूखा है दुनिया का हर छठा आदमी

संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि दुनिया में भुखमरी बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया की सभी सरकारों व नागरिक संगठनों से भुखमरी की समस्या से निपटने के लिए हर संभव कोशिश करने की अपील की है। एक आकलन के मुताबिक दुनिया में गरीबी के चलते एक अरब से ज्यादा लोगों को रोज भूखा सोना पड़ता है। वैश्विक भुखमरी से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम [डब्ल्यूएफपी] और मिलेनिया विलेज प्रोजेक्ट [एमवीपी] आपसी भागीदारी पर सहमत हो गए है हैं। डब्ल्यूएफपी की प्रमुख जोसेट शीरान ने बताया, 'दुनिया में भूखे लोगों की तादाद लगातार बढ़ रही है। यह सहस्राब्दि विकास लक्ष्य [मिलेनियम डेवलपमेंट गोल] के लिए सबसे बड़ा खतरा है। वर्तमान में इस धरती पर हर छह में एक व्यक्ति भूखा जागता है। यह दावा भी नहीं किया जा सकता कि शाम तक वह खुद के लिए खाना जुटा पाएगा या नहीं। जब दुनिया में एक अरब लोग भूखे सोते और जागते हों तो तत्काल निर्णय लेना जरूरी हो जाता है।' शीरान ने भोजन सीधे किसान से खरीदे जाने पर जोर दिया। उनका कहना है कि 'बाजार से दूर किसानों से खाद्यान्न खरीदना उनकी भूख के कुचक्र को तोड़ने का सबसे प्रभावशाली तरीका हो सकता है। डब्ल्यूएफपी ने भूख की समस्या से जूझ रहे देशों की मदद के लिए नियमों में काफी बदलाव किया है। यह विकासशील देशों के किसानों से खाद्य आपूर्ति का 80 फीसदी हिस्सा खरीदती है।' शीरान के मुताबिक विकासशील देशों में 70 फीसदी किसान महिलाएं हैं। एमवीपी ने भुखमरी से सबसे अधिक प्रभावित इलाकों में महिलाओं व बच्चों को कुपोषण मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। वैज्ञानिक शोधों से भी स्पष्ट है कि दो साल से कम उम्र के बच्चे को पर्याप्त पोषण नहीं मिलने पर उसके मस्तिष्क और शरीर का विकास नहीं होता। संयुक्त राष्ट्र महासभा के उद्घाटन भाषण में हिलेरी क्लिंटन ने दुनिया से भुखमरी खत्म करना ओबामा प्रशासन का प्रमुख लक्ष्य बताया था।

भारतीय बच्‍चे कुपोषण के शिकार

भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के ऐसे बच्चों की संख्या काफी अधिक है जिनका कुपोषण के कारण विकास अवरुद्ध हो गया है। यूनीसेफ की ताजा रपट के अनुसार विकासशील दुनिया में पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग 20 करोड़ ऐसे बच्चे हैं जिनका कुपोषण के कारण विकास अवरुद्ध हो गया है। बाल विकास एवं मातृत्व पोषण प्रगति स्थिति रपट के अनुसार बच्चों का विकास अवरुद्ध होने का प्रधान कारण बचपन में कुपोषण रहा है। यह पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में एक तिहाई मौतों का प्रमुख कारण भी है। भारत में पांच वर्ष से कम आयु वर्ग में कम वजन वाले बच्चों की संख्या भी अधिक है। इसके अलावा दुनिया में विभिन्न कारणों से मौत का सामना करने वाले बच्चों की एक तिहाई संख्या भारत में है। रपट के अनुसार विकासशील देशों में प्रति वर्ष जन्मे कम वजन वाले 1.9 करोड़ बच्चों में 74 लाख बच्चे भारत के होते हैं, जो सर्वाधिक है। संयुक्त राष्ट्र की रपट के अनुसार विकासशील विश्व के 80 प्रतिशत अविकसित बच्चे 24 देशों में रह रहे हैं। यूनिसेफ प्रमुख एन्न एम वेनेमैन ने कहा कि कुपोषण के कारण बच्चे की शक्ति क्षीण हो जाती है और वह बीमार हो जाता है जिसके कारण शरीर और जीर्ण शीर्ण हो जाता है। उन्होंने कहा, न्यूमोनिया, डायरिया और अन्य रोगों के कारण जिन बच्चों की मौत होती है उनमें से एक तिहाई से अधिक बच्चें अगर कुपोषण का शिकार नहीं होते तो उन्हें बचाया जा सकता था। भारत में कुपोषण के कारण अविकसित बच्चों की अधिक संख्या का कारण देश की आबादी अधिक होना है। कुपोषण के कारण अविकसित बच्चों की व्यापकता के मामले में अफगानिस्तान पहले नंबर पर है जबकि भारत का स्थान 12वां है। पांच वर्ष के कम आयु वर्ग के कम वचन वाले बच्चों की व्यापकता के संदर्भ में 17 देशों में यह दर 30 प्रतिशत से अधिक है। इस श्रेणी में अधिक व्यापकता दर वाले देशों में बांग्लादेश, भारत, तिमोर लेस्ते और यमन शामिल है जहां कम वजन वाले बच्चों की व्यापकता दर 40 प्रतिशत से अधिक है। रपट में कहा गया है कि पांच वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों में विकासशील देशों में 13 प्रतिशत ऐसे बच्चे हैं जो विभिन्न कारणों से मौत का सामना कर रहे हैं। इसमें पांच प्रतिशत बच्चों की स्थिति गंभीर है।

सोमवार, 9 नवंबर 2009

प्रभाष जोशी की एक कृति मैं भी

प्रभाष जोशी जी की एक कृति मैं भी हूं। 1996-97 में जो के.के. बिड़ला फाउंडेशन फेलोशीप मुझे मिला उसके लिए मैंने पहले से आवेदन नहीं कर रखा था। पता नहीं उन्होंने मेरे में क्या खूबी देखी कि बुलाकर यह फेलोशीप दिलवा दी। यूं तो मैं छात्र जीवन से ही एक्टविस्ट था और पत्रकारिता में भी अभियानी पत्रकार के रूप में जाना जाता था, लेकिन इस फेलोशीप ने मेरी जीवनधारा पूरी तरह बदल दी और मैं एक्टविस्ट हो गया।पत्रकारिता के क्षेत्र में मैंने 'जनशक्ति' से 'जनसत्ता' तक का सफर तय किया है। जिस तरह फिराक गोरखपुरी के बारे में किसी ने कहा था कि आने वाली नस्लें तुम पर फक्र करेगी कि तुमने फिराक को देखा है। मैं भी उन खुशनसीब लोगों में से हूं जिसे प्रभाष जोशी के मातहत दो-ढाई साल काम करने का मौका मिला है। इन्हीं दिनों की दो-तीन घटनाओं का यहां जिक्र करना चाहता हूं। जनसत्ता के पटना कार्यालय में सुरेन्द्र किशोर जी हमारे सीनियर थे। एक दिन खबर आयी कि जोशी जी पटना आ रहे हैं। इसके पहले कभी मैं उनसे नहीं मिला था। सच पूछिए तो मैं काफी अंदर से डरा हुआ था। मगर जब वह कार्यालय आए और कंधे पर हाथ रखकर दुलारते हुए बातें की तो सारा डर फौरन काफूर हो गया। सुरेन्द्र जी ने अपनी कुर्सी पर उन्हें बैठाना चाहा मगर वह मेरे सामने रखी कुर्सी पर आकर बैठ गये। फिर वह हम दोनों को मौर्या होटल ले गये और वहां साथ में खाना भी खिलाया।दूसरी घटना मैं सुरेन्द्र किशोर जी के हवाले से सुनाना चाहता हूं। दिल्ली में देश भर के जनसत्ता ब्यूरोचीफ की बैठक से सुरेन्द्र जी पटना लौटे थे। उन्होंने खुशी पूर्वक सुनाया कि बैठक में जोशी जी ने कहा कि मैं यहां हिन्दू साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ रहा हूं तो पटना में हमारा संवाददाता अली अनवर मुस्लिम फिरकापरस्ती के खिलाफ कलम की लड़ाई लड़ रहा है। जाहिर है कि वह दौर अयोध्या विवाद और शिलापूजन का था जिसमें जोशी जी की लेखनी गरज रही थी। इधर मैंने भी खुदाबख्श लाइब्रेरी के डायरेक्टर बेदार साहब के खिलाफ मुस्लिम फंडामेनटलिस्टों द्वारा चलाये जा रहे अभियान के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था।तीसरी घटना को रांची की जनसत्ता संवाददाता वासवी के हवाले से आपको बताना चाहता हूं। वासवी जोशी जी से मिलकर लौटी थीं। वह लंबे समय से रांची में स्ट्रींगर थीं। स्टाफर बनाना चाहती थीं। जोशी जी ने कहा कि पटना में अनवर को भी स्टाफर बनाना है। तब जनसत्ता आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा था। जोशी जी मुझे और वासवी को स्टाफर नहीं बना सके। इसका मलाल उन्हें बराबर रहा। इसबीच मैंने स्वतंत्र भारत में नौकरी कर ली। इसमें रहते हुए ही जोशी जी ने मुझे के.के.बिड़ला फाउंडेशन फेलोशीप दिलवाया। एक साल के अध्ययन के बाद जब मेरी किताब 'मसावात की जंग' तैयार हुई तो उसे छपवाने से लेकर उसका विमोचन कराने तक जोशी जी पेश-पेश रहे। वह मुझे लेकर पूर्व प्रधानमंत्री बीपी सिंह के यहां गये। बीपी सिंह ने पटना के गांधी मैदान में हमारी किताब का विमोचन किया। उन दिनों यहां पुस्तक मेला लगा था। बीपी सिंह जी पिछले सात साल से पटना नहीं आये थे और मृत्युपर्यन्त वह कभी पटना नहीं आ सके। 2004 में जब मेरी दूसरी किताब 'दलित मुसलमान' आयी तो जोशी जी ने उसका भी विमोचन बीपी सिंह से दिल्ली के रामलीला मैदान में कराया। यहां मैं बताते चलूं कि अपनी दोनों पुस्तकों का विमोचन मैं जोशी जी से ही कराना चाहता था, लेकिन उन्होंने ही बीपी सिंह का नाम सुझाया और मुझे उसके लिए राजी किया।जोशी जी ने अपने सभी संगी साथियों के बीच मुझे मकबूल बना दिया था। अपने 'कागद कारे' कालम में भी कई बार मेरे जैसे अदना आदमी की चर्चा कर दी। उनके अचानक चले जाने से पसमांदा तहरीक को बहुत नुकसान हुआ है। मेरे सर से एक अभिभावक का हाथ हट गया है। हम उन्हें खराज-ए-अकीदत पेश करते हैं।

- अली अनवर अंसारी
(लेखक राज्यसभा सांसद हैं)

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

आरएसएस प्रमुख भागवत के नाम पत्र

जिन दिनों भाजपा सरकार के नेतृत्व वाले गुजरात में मजहब के नाम पर इंसानियत का कत्लेआम हो रहा था। लोगों को घरों में जिंदा इसलिए जलाया जा रहा था, क्योंकि वे मुसलमान थे। भाई-भाई को लहू का प्यासा बनाया जा रहा था। जिन दिनों बाबरी मस्जिद ढाहने का जश्न मनाया जा रहा था। देश को दंगे की आग में झोंका गया था..., उस दिन आरएसएस वाले मोहन भागवत आप कहां थे? क्या कर रहे थे? यह सवाल इसलिए पूछ रहा हूं क्योंकि इन दिनों आप बहुत बोलने लगे हैं - देश की सम्प्रभुता खतरे में है।
हिटलर के वंशज समझे जाने वाले आपकी बिरादरी से जनता जानना चाहती है कि क्या उन दिनों देश खतरे में नहीं था? संप्रभुता व अखंडता को खतरा नहीं था?आप कहते हैं कि बंग्लादेश से घुसपैठ हो रहा है। लेकिन क्या यह सच नहीं है कि बंग्लादेशी घुसपैठियों से ज्यादा खतरनाक आरएसएस के गुंडे हैं जो देश में सांप्रदायिक उत्पात मचा रहे हैं? घुसपैठियों से तो भारतीय फौज निबट लेगी, लेकिन इन आस्तीन के सांपों से निबटने के लिए क्या किया जाये? आपके शब्दों में अगर बंग्लादेश से आतंकवादी भारत में घुस रहे हैं! तो क्या यह सच नहीं कि नेपाल के रास्ते सदियों से आतंकी देश घुसते आये हैं। जब वह हिन्दू राष्ट्र था, उस समय आपने नेपाल बार्डर सील करने की बात क्यों नहीं की?दूसरा मुद्दा आपने उठाया है नक्सलियों का। आप मानते हैं इन्हें गोलियों से भून दिया जाये। आपको अपनी इस सोच पर शर्म करना चाहिए। जिन्हें आप गोलियों से भून डालने के लिए सरकार को उकसा रहे हैं, वह गांव के गरीब हैं जिन्हें वर्षों से रोटी व रोजगार नसीब नहीं हुआ है। इन्हें आपके स्वयंसेवकों की तरह हथियार प्रदर्शन का शौक नहीं है। जरा सोचिए- आप पूजा के बहाने हथियार लहरा कर शक्ति प्रदर्शन करते हैं, कुर्सी हथियाने की सियासत करते हैं। और ये गरीब रोटी के लिए हथियार उठाते हैं, पकड़े जाने पर जेल भी जाते हैं। श्रीमान, कोई मां के पेट से बंदूक लेकर पैदा नहीं होता, और ना ही कोई बंदूक उठाना चाहता है। यह तो आप जैसे अद्र्ध सामंतों की देन है कि गरीब बंदूक उठा रहे हैं। आप व्यवस्था की खामियों को दूर करने की सियासत करते तो शायद इनके हित में होता। लेकिन आपको मंदिर, मस्जिद से फुर्सत कहां? आपको तो लोगों की लाश पर राजनीति करने में मजा आता है।

(पिछले दिनों बिहार के समस्तीपुर व मध्यप्रदेश के जबलपुर में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा दिये गये भाषण पर एक प्रतिक्रिया)

सोमवार, 2 नवंबर 2009

ठाकरे तुम्हारे बाप की है मुंबई?

देश तोडऩे और सांप्रदायिक फसादों के लिए कुख्यात बर्बरता की ढाल ठाकरे उर्फ बाल ठाकरे के भतीजा राज ठाकरे ने एक बार फिर अपने चुतियापे का परिचय दिया है। उसने कहा है कि महाराष्ट्र में जो नये विधायक चुनकर आये हैं उन्हें मराठी में ही शपथ लेना होगा। यह धमकी उसने इस अंदाज में दी है जैसे महाराष्ट्र उसके बाप का है! इस हरामखोर ने यह भी धमकी दी है कि 'सिर्फ मराठी में' शपथ नहीं लेने पर नये विधायकों को मनसे विधायकों के आक्रोश का सामना करना पड़ेगा। लगता है शपथ-ग्रहण समारोह विधानसभा के बजाये उसकी मां के .... में होने जा रहा है।ठाकरे इस तरह का चुतियापा क्यों कर रहा है? मुझे लगता है इस सवाल का जवाब उन तमाम लोगों को मालूम है जो हर दिन गुनगुनाते हैं- सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा। हिन्दी हमारी हिन्दोस्तान में रहने वाले लोगों की जुबान है। मराठी और अन्य भाषाएं उसकी बहन स्वरूप हैं। किसी को मराठी बोलने के लिए बाध्य करना न सिर्फ फांसीवादी मानसिकता का परिचायक है, बल्कि देश को तोडऩे और तबाह करने की विदेशी साजिश है। इस हरामखोर की औलाद ठाकरे बंधुओं को कोई यह समझाये कि यदि हिन्दी फिल्मों का कारोबार मुंबई में नहीं होता तो क्या मुंबई सुर्खियों में होती? उसे आज जो सम्मान है, क्या मिल पाता? कोई इन ठाकरे बंधुओं से पूछे - मुंबई को दिया क्या है? जवाब मैं बता रहा हूं- इन्होंने दिया है दाउद इब्राहिम, आतंकवाद, मुंबई ब्लास्ट, दंगा-फसाद आदि? यानी यहां जो कुछ अमानवीय है, ठाकरे बंधुओं की देन है।
और अंत में, आईए ठाकरे बंधुओं को उन्ही की भाषा में जवाब देकर देश की अखंडता की हिफाजत करें।