सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना

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शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

'नफरत हो गई है मां शब्द से'


ट्रैफिकिंग की शिकार कोलकाता की रिम्पा ने सुनाई आपबीती


मां शब्द से अब मुझे नफरत हो गई है। जो सगी थी उसने दो हजार में बेच डाला। फिर प्यार से जिसको अम्मा कहा उसने भी कहीं का नहीं छोड़ा। अब तो किसी पर यकीन ही नहीं आता। इतना कहते कहते रिम्पा की आंखे नम हो जाती हैं। बकौल रिम्पा, कोलकाता के आमरा थाना स्थित बारासाथ की रहने वाली हूं। मां अनारा बीबी, पिता गणेश कर्मकार, पांच बहनों और चार भाइयों के संग रहती थी। तारीख और ट्रेन का नाम याद नहीं पर दो माह पहले मेरी मां ने पड़ोस की एक महिला की बेटी के साथ मुझे आर्केस्ट्रा में काम करने के लिए छपरा भेज दिया। यहां आई तो पता चला कि दो हजार में बेच दी गई हूं। मुझे नाचने और साथ में सोने के लिए कहा जाता था। ऐसा नहीं करने पर आर्केस्ट्रा मालिक मेरे साथ मारपीट करते थे। कहते थे- तुम्हारी मां को रुपये देकर तुम्हे खरीदा है। मेरी मर्जी तुम्हारे साथ मैं जो करूं। तंग आकर 15 दिन पहले भाग गई। ट्रेन पकड़कर मुजफ्फरपुर पहुंच गई। काफी देर तक जंक्शन पर बैठी रही। यहां मुझे दो महिलाएं मिलीं। मैंने आपबीती सुनाई। उन्होंने कहा- चलो, मेरे साथ रहो। तुम्हे कोई दिक्कत नहीं होगी। तीन दिनों तक उन्होंने मुझे साथ रखा। मैं उन्हें अम्मा कहकर बुलाने लगी। फिर मुझे दिल्ली ले गई। उन्होंने वहां मुझे बेचने की कोशिश की। पुलिस ने हम सभी को पकड़ लिया। फिर उन्होंने पुलिस को पैसे दिए। हम सभी छूट गए। फिर हमको लेकर नेपाल चली गई। वहां दो दिनों तक प्लेटफार्म पर रही। एक महिला हमेशा मेरे पास रहती। मंगलवार की देर रात मुजफ्फरपुर जंक्शन पहुंची, और मुझे रिक्शा से लेकर कहीं चले गए। बुधवार की सुबह ट्रेन पकड़ने के लिए मुझे लेकर फिर जंक्शन पहुंची। इसी बीच मैंने एक यात्री से बचाने की गुहार लगाई। फिर उसने मुझे पुलिस के पास पहुंचा दिया।


बहरहाल, ट्रैफिकिंग की शिकार 16 वर्षीय रिम्पा को जीआरपी ने मुजफ्फरपुर की स्वयंसेवी संस्‍था निर्देश के हवाले कर दिया है। थानाध्यक्ष शशि भूषण सिंह के अनुसार पुलिस मामले की छानबीन कर रही है। उधर, निर्देश से जुड़ी शांति देवी ने कहा कि रिम्पा यदि घर जाना चाहेगी तो उसे वहां भेज दिया जाएगा। नहीं तो यहीं प्रशिक्षण देकर उसे रोजगार मुहैया कराई जाएगी।

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

सेहत से 'खेल' रहे प्राइवेट कर्मचारी

घटना एक - 17 अप्रैल 2010 को राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान महाविद्यालय की सहायक प्राध्यापिका डा. अरुणिमा कुमारी के 48 वर्षीय पति ललन चौधरी ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली। चौधरी एक निजी मोबाइल कंपनी में जोनल आपरेशनल मैनेजर के पद पर दरभंगा में कार्यरत थे। प्रो. अरुणिमा के मुताबिक उनके पति इन दिनों कंपनी के काम से मानसिक तनाव में रहते थे। पुलिस मामले की छानबीन में जुटी है।

घटना दो - 16 अप्रैल 2010 को समस्तीपुर के शेखोपुर गांव में पेड़ से लटका दरभंगा निवासी गिरेन्द्र साह का शव बरामद हुआ था। मृतक ने अपने सुसाइट नोट में कह रखा है कि वह लोक शिक्षक था। उसे कुछ साल पहले हटा दिया गया। इस कारण वह आत्महत्या कर रहा है। पुलिस मामले की छानबीन में जुटी है।यह दोनों ताजा घटनाएं अस्थाई जॉब करने वाले कर्मचारियों से जुड़ी हैं। एक प्राइवेट कंपनी का कर्मचारी रहा है, तो दूसरा सरकारी स्कूल का संविदा शिक्षक। यानी दोनों के जॉब की कोई गारंटी नहीं। एक की आत्महत्या का कारण बना काम का दबाव तो दूसरे की वजह बनी बेरोजगारी। दरअसल, प्राइवेट जॉब करने वालों की जिंदगी में तनाव दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। इसकी वजह है प्रतिस्पद्र्धा व लक्ष्य पूरा करने की होड़ में खुद पर ध्यान नहीं दे पाना, हमेशा तनावग्रस्त रहना और भरपूर नींद नहीं ले पाना। पहले ऐसी घटनाएं सिर्फ बड़े शहरों में ही होती थीं, लेकिन अब उत्तर बिहार भी जद में है। मुजफ्फरपुर समेत सभी छोटे शहरों में प्राइवेट कंपनियां पधार चुकी हैं। इन्होंने हजारों हाथों को काम भी दे रखा है, पर जॉब में टिके रहने के लिए जिस तरह टारगेट मिल रहा है उससे कर्मचारियों की जिंदगी ही बदरंग होती जा रही है।

सर्वे भी बयां कर रहा सच्‍चाई
चेम्बर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री आफ इंडिया द्वारा जारी एक हेल्थ केयर स्टेट्स रिपोर्ट में कहा गया है कि 24 फीसदी कारपोरेट कर्मचारियों में लक्ष्य और काम के दबाव के कारण हाईपरटेंशन, शुगर और अन्य बीमारियां हो रही हैं। मुजफ्फरपुर शहर के भी कई वरीय डाक्टर इस बात को स्वीकार कर रहे हैं। इनकी मानें तो काम के साथ शरीर का ख्याल नहीं रखने के कारण समस्याएं बढ़ रही हैं। तनाव की अधिकता से आत्महत्या की प्रवृति चिंताजनक है।

'' लंबे समय तक आफिस में काम करने के बाद सिर्फ 5-6 घंटे की नींद से हम फ्रेश महसूस नहीं करते। इससे थकान व सिर दर्द की समस्या होती है। यदि हालात ऐसे ही रहे तो 50 वर्ष में ही शरीर रिटायर हो जाएगा। '' - ओम प्रकाश, कारपोरेट कर्मी

'' लक्ष्य निर्धारण वाले काम में दिन और रात का फर्क नहीं रहता। सारा ध्यान लक्ष्य पर टिका रहता है। जिसके कारण नींद पूरी नहीं होती। इससे हमेशा तनाव एवं सुस्ती बनी रहती है। '' - संतोष कुमार राज, एलआईसी अभिकर्ता

'' काम की अधिकता के कारण सिर बोझिल हो जाता है। दर्द की दवा भी लेनी पड़ती है। 5 से 6 घंटे की नींद ही रोज की दिनचर्या बन गई है। इसके कारण कभी-कभी आत्मविश्वास भी डिगने लगता है। '' - सविता सिंह, कारपोरेट कर्मी

'' काम के दबाव में शहर के लोग पूरी नींद नहीं ले रहे है। इसके कारण थकान, सिर दर्द, सुस्ती, चिड़चिड़ाहट आदि समस्याएं सामने आ रही है। अत्यधिक आत्मविश्वास कमजोर होने के कारण व्यक्ति में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति भी आ रही है। तनाव से बचने के लिए लोगों को 6 से 7 घंटे की नींद के साथ योग की भी आदत डालनी चाहिए। ''
- डा. गणेश प्रसाद सिंह, वरीय मनोचिकित्सक, एसकेमेडिकल कालेज