सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना

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शनिवार, 25 सितंबर 2010

बिहार में कांग्रेस के दो अध्यक्ष!

कांग्रेस और राजद की वेबसाइट अपडेट नहीं

इन दिनों बिहार कांग्रेस कमेटी में दो प्रदेश अध्यक्ष कार्यरत हैं! चौंकिए मत, यकीन नहीं आता तो देश की सबसे बुजुर्ग पार्टी कांग्रेस की वेबसाइट पर आपका स्वागत है। पार्टी की केन्द्रीय वेबसाइट के अनुसार अनिल शर्मा अब भी अपने पद पर बने हुए हैं। वहीं प्रदेश कमेटी की वेबसाइट कहती है कि चौधरी महबूब अली कैसर ने मोर्चा संभाल रखा है।

बदलते जमाने को ध्यान में रखकर एक तरफ कांग्रेस पार्टी जहां अपने हर काम को हाईटेक और प्रोफेशनल अंदाज में अंजाम देना चाहती है। कार्यकर्ता बनाने से लेकर चुनाव प्रचारों के लिए लेटेस्ट तकनीक का सहारा ले रही है। इंटरनेट के माध्यम से समर्थक बना रही है। वहीं अपनी वेबसाइट तक अपडेट नहीं कर पा रही है। इसी का परिणाम है कि केन्द्रीय वेबसाइट पर जिन प्रदेश अध्यक्षों की सूची जारी की गई है उनमें अनिल शर्मा का ही नाम, पता और फोन नंबर शो किया गया है। जबकि श्री शर्मा इस वर्ष के जून में ही प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिए गए हैं। सूबे में फिलहाल उनकी कुर्सी पर चौधरी महबूब अली कैसर अध्यक्ष की भूमिका में हैं।

मालूम हो कि केन्द्रीय वेबसाइट पर कुल 36 प्रदेश अध्यक्षों के नाम, पते व फोन नंबर दिए गए हैं। इसके साथ ही प्रदेश कमेटी के वेबसाइट लिंक भी उपलब्ध कराए गए हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि पार्टी अब तक छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, राजस्थान, पंजाब, उडि़सा, तमिलनाडु, चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर, मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, दमन एंड द्वीव और लक्षद्वीप कमेटी के लिए वेबसाइट विकसित नहीं कर पाई है।

कायम है राजद का कांग्रेस प्रेम

इस चुनावी फिजां में राजद और कांग्रेस भले ही एक दूसरे को पानी पीकर कोसते रहे हों, लेकिन सच्चाई कुछ और है! जी हां, यह राजद की वेबसाइट बोलती है। पार्टी ने जिस वेबपेज पर अपने तमाम विधायकों की सूची जारी कर रखी है उसके माथे पर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व प्रधानमंत्री डा। मनमोहन सिंह की तस्वीरें भी मौजूद हैं। इन तस्वीरों में राजद सुप्रीमो जहां कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी से बातचीत कर रहे हैं, वहीं डा। मनमोहन सिंह चुपचाप' तमाशा देख रहे हैं।

रिपोर्ट - एम. अखलाक

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

उत्तर बिहार में डटे हैं जन संगठन भी

बिहार में चुनावी बिगुल बज चुका है और रफ्ता-रफ्ता सियासी सरगर्मियां परवान चढ़ रही हैं। इसी के साथ उत्तर बिहार की फिजां में तैरने लगी है जन संगठनों की आवाज, जो चुनावी मुद्दा बनने को बेकरार है और जो वर्षों से सियासी झांसा झेल रही है। अपनी मांगों के लिए जब-जब इन संगठनों ने नारे बुलंद किए, आंदोलन को आगे बढ़े, तब-तब इन्हें सहलाया गया, बहलाया गया। अब जबकि चुनाव सामने है और सियासी पार्टियां उनके मुद्दे-मांगों से मुंह मोड़े हुए है, ऐसे में संगठनों ने भी अपनी कमर कस ली है। इस बार वे अपने मुद्दे को गरम करने की फिराक में अभी से जुट गए हैं। आइए जानें किस संगठन का क्या है मुद्दा?

आरटीई कानून लागू हो : बिहार में शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) लागू करने की मांग को लेकर 'भूमिका विहार' आंदोलन चला रहा है। पिछले दिनों पटना और मुजफ्फरपुर में यह संगठन राजनीतिक दलों और प्रबुद्धजनों के साथ सम्मेलन आयोजित कर अपनी मांगों को उनके समक्ष रख चुका है। संगठन की मांग है कि सियासी दल इस मुद्दे को अपने चुनावी घोषणा पत्रों में शामिल करें। संगठन के अरुण कुमार सिंह कहते हैं कि सामाजिक मुद्दों से सियासी दलों का कोई नाता नहीं रह गया है। इस बार उनकी कोशिश होगी कि संगठन की मांग की ओर सियासी पार्टियां ध्यान दे और उसे अमल में लाने की भरपूर कोशिश करे।

सांस्कृतिक नीति जमीन पर उतरे : सूबे की सांस्कृतिक नीति 2004 को जमीन पर उतारने, लोक कलाओं व कलाकारों के संरक्षण के लिए अलग कला और कलाकार आयोग गठित करने, कलाकार नीति बनाने और सभी जिलों में कला प्रदर्शन के लिए नगर भवन व ऑडिटोरियम नि:शुल्क करने के लिए 'गांव जवार' पिछले एक साल से आंदोलन चला रहा है। यह संगठन भी पटना व मुजफ्फरपुर में सम्मेलन कर सियासी दलों से इन्हें चुनावी घोषणा पत्रों में शामिल करने की मांग कर चुका है। संगठन के डा. कौशल किशोर चौधरी कहते हैं कि पक्ष-विपक्ष की सियासत करने वाले नेताओं को इस बार संगठन के मुद्दों पर ध्यान देने के लिए मजबूर किया जाएगा। मुजफ्फरपुर थियेटर एसोसिएशन भी पिछले दिनों चुनावी घोषणा पत्रों में सांस्कृतिक सवालों को स्थान देने की मांग को लेकर विचार गोष्ठी आयोजित कर चुका है। 'इप्टा' भी इन्हीं सवालों को लेकर शहर में धरना-प्रदर्शन कर चुका है। उधर, 'बेटी बचाओ आंदोलन' ट्रैफिकिंग की रोकथाम के लिए ठोस पहल करने व नाच पार्टियों में काम करने वाले कलाकारों को मजदूर का दर्जा देने की कई वर्षों से वकालत कर रहा है।

मैथिली की आवाज भी सुनिए : मिथिलांचल में 'विद्यापति सेवा संस्थान' प्रबुद्धजनों की बैठक में प्रस्ताव पारित कर सियासी दलों से मैथिली भाषा में ही बैनर-पोस्टर व चुनावी घोषणा पत्र जारी करने की मांग कर चुका है। संस्था के सदस्यों को कहना है कि इस बार यदि ऐसा नहीं हुआ तो सियासी दलों को संगठन का विरोध झेलना होगा।

मिथिला राज्य की भी है मांग : अखिल भारतीय मिथिला पार्टी पिछले कई वर्षों से अलग मिथिला राज्य बनाने की मांग कर रही है। नेतागण भरोसा देते हैं, बैक से समर्थन की बात करते हैं, पर जब चुनाव आता है तो मुद्दा गौण हो जाता है। संगठन के पदाधिकारी इस साफ आश्वासन के बाद भी नेताओं को वोट देने का मन बना रहे हैं। इसके लिए वे जागरुकता अभियान भी चलाने की सोच रहे हैं।

बज्जिकांचल भी है आवाज : बज्जिकांचल विकास पार्टी भी वर्षों से अलग बज्जिकांचल राज्य बनाने की मांग को लेकर संषर्घरत है। इस संगठन के कार्यकर्ता तो अब चुनावी मैदान में उतरकर जन समर्थन बटोरने लगे हैं। इस बार भी वे अपनी आवाज जनता और सियासत तक पहुंचाने की जुगत में हैं।

रिपोर्ट - एम. अखलाक