सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना

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सोमवार, 25 जनवरी 2010

इतने साल बाद आयी याद


ये हैं महाकवि आचार्य जानकी वल्‍लभ शास्‍त्री। मुजफ्फरपुर स्थित अपने निराला निकेतन में अपने कुत्‍तों के साथ जीवन बिता रहे हैं। इन्‍हें सरकार ने पदमश्री देने की घोषणा की है। लेकिन आचार्य खुश नहीं है। कहते हैं- इतने साल बाद आई याद।

...और कुत्तों से इस तरह हो गया इश्क

लगा कि उससे मेरा पूर्व जनम का कोई रिश्ता है : आचार्य जानकी वल्लभ शास्‍त्री

मुजफ्फरपुर : यूं तो आपने महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री को गोद में कुत्तों को खेलते-खिलाते कई बार देखा होगा। लेकिन, बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि उन्हें कुत्तों से प्रेम हुआ कैसे? आइए जानते हैं महाकवि के ही शब्दों में, 'बहुत पहले की बात है। निराला निकेतन के लिए जमीन खरीद चुका था। मकान बनाने की तैयारी चल रही थी। मेरी जमीन के सामने प्रतिदिन एक कुत्ता आकर खड़ा हो जाता। शुरू में मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया। फिर वह मेरी निगाहों में चढ़ गया। उसे फटकार कर बहुत बार भगाने की कोशिश की, लेकिन विफल रहा। वह घूम फिर कर आ धमकता। मुझे निहारते रहता। मैं उसे देखकर दंग रह जाता। पता नहीं मुझे कैसे उससे लगाव हो गया। फिर तो वह मेरे साथ ही रहने लगा। मैंने ईश्वर का उपहार समझ कर उसे स्वीकार कर लिया। मुझे लगा कि पूर्व जन्म में उससे मेरा कोई रिश्ता रहा होगा, तभी भगाने का नाम नहीं ले रहा। तभी से कुत्ते भी मेरे वफादार साथी बन गये। देखिए ना, किस तरह मेरी गोद में उछल-कूद रहे हैं। अब इस कुतिए को ही देखिए, इसने चंद रोज पहले ही इन बच्चों को जन्म दिया है, बच्चे मेरी गोद में खेल रहे हैं और यह मेरे बगल में आराम से बैठी है। इसे पता है कि बच्चे सुरक्षित हैं।' यह रोचक संस्मरण आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने नवंबर 2009 में सुनाई थी। मौका था 'कौआ' नामक साहित्यिक पुस्तक के लोकार्पण का। तब सेहत ठीक नहीं होने के कारण वह निराला निकेतन के मंच तक नहीं पहुंच पाये थे। जिस बरामदे में रोजाना बैठते हैं, वहीं पुस्तक का लोकार्पण किया था। शहर के दर्जनों साहित्यकार, प्रकाशक और मीडियाकर्मी इसके गवाह बने थे। इस मौके पर आचार्य ने कोई औपचारिक भाषण तो नहीं दिया, लेकिन बज्जिका रामायण के रचयिता अवधेश्वर अरुण से करीब एक घंटे बातचीत की थी। इसी दरम्यान उन्होंने अपने पशु प्रेम का यह वाक्या भी सुनाया था।बहरहाल, आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री के संरक्षण में प्रकाशित होने वाली 'बेला' पत्रिका के संपादक विजय शंकर मिश्र के अनुसार निराला निकेतन का निर्माण 1950 में हुआ था। वर्तमान में यहां विनायक और भालचंद्र नामक दो कुत्तों और 40 गायों की समाधि है। ये दोनों महाकवि को बहुत प्यारे थे। 1997 में भालचंद्र और 1998 में विनायक ने इनका साथ छोड़ दिया। आचार्य कहते हैं कि व्यक्ति से धोखे की गुजांइश रहती है, लेकिन पशु जिससे प्रेम करता है, तन-मन से उसी का हो जाता है। फिलहाल, आचार्य के पास तीन कुत्ते और छह गायें हैं जिन्हें दिलो-जां से प्यार करते हैं। उनकी पहली गाय का नाम कृष्णा था।
रपट - एम अखलाक

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

लोक जमघट में जुटेंगे एक हजार लोक गायक

मुजफ्फरपुर : लोक कलाकार सफदर हाशमी और भिखारी ठाकुर की याद में रविवार को 'गांव जवार' सांस्कृतिक संगठन के बैनर तले एक हजार ग्रामीण कलाकार जिला स्कूल मैदान में जुटेंगे।'लोक जमघट' नामक यह सांस्कृतिक आयोजन सुबह 9 बजे प्रारंभ हो जायेगा और शाम पांच बजे तक चलेगा। इसमें प्रत्येक प्रखंड के तीन-तीन चुनिंदा लोक गायक पारंपरिक लोकगीतों की प्रस्तुति देंगे। इनमें कई प्रस्तुतियां ऐसी होंगी जो अब लुप्त होती जा रही हैं। कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले कुल 50 लोक गायकों की सूची तैयार कर ली गयी है। कार्यक्रम के दौरान उपस्थित कलाकार, कला प्रेमी, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकता, शिक्षाविद् और पंचायत प्रतिनिधि प्रस्ताव पारित कर 'बिहार की कला नीति 2004' को सूबे में शीघ्र लागू करने की मांग राज्य सरकार से करेंगे।इस जमघट का उद्घाटन सूबे के लघु सिंचाई मंत्री दिनेश प्रसाद कुशवाहा, आपदा प्रबंधन मंत्री देवेश चंद्र ठाकुर, सांसद व पूर्व मंत्री कैप्टन जयनारायण प्रसाद निषाद, जिला परिषद अध्यक्ष किरण देवी, पूर्व उपमहापौर विवेक कुमार, बेटी बचाओ आंदोलन के संयोजक अरुण कुमार सिंह, दैनिक जागरण के संपादकीय प्रभारी धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव, प्रात:कमल के संपादक ब्रजेश कुमार व एमएसकेवी की प्राचार्या डा. ममता रानी संयुक्त रूप से करेंगी।'गांव जवार' संयोजक मंडल के सदस्य एम. अखलाक के अनुसार यह अबतक का सबसे बड़ा लोक जमघट होगा। इसकी विशेषता यह होगी कि सिर्फ ग्रामीण कलाकार ही अपनी प्रस्तुति देंगे, जबकि शहर के संस्कृतिकर्मी इनकी मेजबानी करेंगे। यही नहीं बिहार में यह ग्रामीण कलाकारों का पहला नेटवर्क है। यह जनसंगठन की तरह काम करेगा। भविष्य में इसका विस्तार उत्तर बिहार के अन्य जिलों में भी होगा। उन्होंने बताया कि ग्रामीण कलाकार खुद संसाधन जुटाकर इस आयोजन को अंजाम दे रहे हैं। यही नहीं ग्रामीण इलाकों से आने वाले कला -प्रेमियों व कलाकारों के लिए यहां भोजन की भी व्यवस्था की गयी है।