सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना

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सोमवार, 3 जून 2013

दो कदम तो चले हैं, अभी सफर बाकी है

पंचायतीराज और महिलाएं - 2
 
वैश्वीकरण के साथ कदमताल करता बिहार, रफ्ता रफ्ता बदलता बिहार, अब पंचायतीराज व्यवस्था के चौथे चरण की ओर कदम बढ़ा चुका है। तीन साल बाद यानी वर्ष 2016 में चुनाव होंगे। पिछले तीन चुनावों के बाद ग्राम सरकारों की तस्वीरें हमारे सामने हैं। तस्वीरें कई सवाल खड़े कर रही हैं। कई सुझाव भी दे रही हैं। तस्वीरें आईना भी दिखा रही हैं। समीक्षा करने के लिए प्रेरित भी कर रही हैं। समीक्षा से ही हालात और बेहतर होगा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि बिहार के सभी जिलों में पंचायतीराज व्यवस्था अपने तीन पंचवर्षीय सफर के दौरान ग्रामीण विकास योजनाओं में लूट-भ्रष्टाचार और अक्षम महिला नेतृत्वों के कारण सवालों के घेरे में रहा है। मुखिया, पंचायत समिति सदस्य, पंच, सरपंच और जिला परिषद सदस्यों पर तरह-तरह के रिश्वतखोरी के आरोप लगते रहे हैं। इंदिरा आवास हो, सोलर लाइट हो या शिक्षक नियोजन तमाम योजनाएं जनप्रतिनिधियों के लिए दुधारू गाय साबित होती रही हैं। यही नहीं महिला जनप्रतिनिधियों की आड़ में पुरूष सत्ता संभालते रहे हैं। बैठकों में महिला जनप्रतिनिधियों के पतियों का जाना आम बात है। गांवों में तो मुखिया के पति संक्षेप में एमपी कहलाने लगे हैं।
लेकिन, इन तमाम बुराइयों और खामियों के बावजूद एक सकारात्मक पक्ष भी है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। कई ऐसी महिला जनप्रतिनिधि भी हैं जो विषम परिस्थितियों में बेहतर काम कर रही हैं। सरकारी बैठकों में खुद फैसले ले रही हैं। योजनाओं को समझ रही हैं, उसे जमीन पर सही तरीके से उतार रही हैं। गांवों में अंधविश्वास और रूढ़ियों के खिलाफ जंग लड़ रही हैं। वह घर के पुरूषों की छायाप्रति नहीं हैं। समाज के सामने उदाहरण पेश कर प्रेरणास्रोत बन रही हैं। ऐसी महिलाएं बिहार के सभी जिलों में मिल जाएंगी। आए दिन अखबारों में खबर की शक्ल में दिखाई भी पड़ती हैं। मुजफ्फरपुर जिले के तीन उदाहरण गौर करने लायक हैं।
बंदरा प्रखंड की शिवराहां मझौलिया पंचायत की चंद्रकला देवी अनुसूचित जाति से आती हैं। नेतृत्व क्षमता और जमीनीस्तर पर काम करने के कारण तीन बार मुखिया चुनी जा चुकी हैं। हर कोई उनके नेतृत्व क्षमता का कायल है। सरकारी कामकाज में पति का कोई हस्तक्षेप नहीं है। योजनाओं की जानकारी जुबान पर रहती है। पूछिए तो फटाफट बता देंगी। मुखिया बनने से पहले गांव में गरीब बच्चियों को शिक्षा दान करती थीं। आज पंचायतीराज व्यवस्था की बागडोर संभालने के साथ-साथ कई जनसंगठनों से जुड़कर महिला हिंसा रोकने, सबको शिक्षित करने, स्वास्थ्य जागरूकता, आर्थिक स्वावलंबन आदि के लिए भी काम कर रही हैं। चंद्रकला एक कुशल नेतृत्व की जिंदा मिसाल हैं।
शिवराहां मझौलिया पंचायत की एक और रोचक घटना महिलाओं के जागरूक होने की कहानी बयां कर रही है। कृष्णा देवी और बेबी देवी में गहरी दोस्ती थी। कृष्णा पंचायत समिति सदस्य चुनी गईं। इसके बाद उनके बेटे ने दलाली शुरू कर दी। कृष्णा की नीयत भी बदलती गई। जब दोबारा चुनाव आया तो गांव की महिलाओं ने बैठकर कृष्णा देवी की आलोचना की। इतना ही नहीं बेबी देवी को अपना उम्मीदवार बना डाला। अंततः बेबी देवी चुनाव जीतकर पंचायत समिति सदस्य बन गईं। बेबी देवी के कामकाज से लोग संतुष्ट हैं। वह इलाके में बेहतर काम कर रही हैं। यह वाक्या ग्रामीण महिलाओं में आ रही जागरूकता की ओर इशारा है।
तीसरा उदाहरण और भी दिलचस्प है। मुशहरी प्रखंड की रजवाड़ा पंचायत की सावित्री देवी बेहद गरीब परिवार से आती हैं। वह कहती हैं कि पंचायत चुनाव लड़ने की बात सोच भी नहीं सकती थी, लेकिन गांव-समाज के दबाव में आकर चुनाव मैदान में उतर गई। निर्विरोध पंच चुनी गई। जब पुनः चुनाव आया तो विरोध में एक और महिला खड़ी हो गई। मेरे मन में सवाल उठने लगा कि जब खुद लड़ना नहीं चाहती थी तो गांव वालों ने न सिर्फ चुनाव लड़ाया बल्कि निर्विरोध जीत का सेहरा भी बांधा दिया। आखिर क्या चूक हुई कि जब स्वयं चुनाव लड़ना चाहती हूं तो अन्य प्रत्याशी भी मैदान में आकर डट गए ? सावित्री ने तय किया कि क्षेत्र में किए गए काम के आधार वोट मांगेगी और सिर्फ एक दिन घूमकर चुनाव प्रचार करेगी। उसने ऐसा ही किया। और सावित्री पचास मतों से दोबारा चुनाव जीत गईं। सावित्री कहती हैं कि ईमानदारी से अगर काम करो तो जनता इनाम जरूर देती हैं।
ये उदाहरण इशारा करते हैं कि पंचायतीराज व्यवस्था के भीतर तेजी से बदलाव की प्रक्रिया जारी है। हताश और निराश होने की जरूरत नहीं है। 50 फीसद महिला आरक्षण बेमानी साबित नहीं होगा। तेजी से समाज बदलने के कारण महिलाओं के प्रति नजरिया भी बदल रहा है। अब घर से हर समुदाय की महिलाएं निकलने लगी हैं। जनता के दबाव और आलोचनाओं के कारण कई जगह सरकारी बैठकों में एमपी (मुखिया पति) की दाल नहीं गल रही है। हां, यदि पंचायती राज व्यवस्था जनता को प्रत्यक्ष शासन की ओर ले जाने वाला महत्वपूर्ण कदम है तो यह कदम तभी सार्थक होगा जब जनता अपने आसपास के विकास कार्यों में अपने ही गांव जवार के प्रतिनिधियों द्वारा की जा रही प्रत्यक्ष बेईमानी को देखेगी और तत्क्षण उसका संगठित विरोध करेगी। जनता में इस प्रकार की चेतना के विकास से ही पंचायती राज व्यवस्था की जड़ें मजबूत होंगी।
 
 
''पिछले तीन पंचायत चुनावों का असर अब गांव-समाज में दिखने लगा है। खासकर गांव की महिलाओं की दुनिया तेजी से बदल रही है। 50 फीसद महिला आरक्षण की भूमिका भी अहम रही है। हां, भ्रष्टाचार के मामलों में भी महिला जनप्रतिनिधियों के नाम बहुत कम सामने आए हैं। यह अच्छी बात है।'' - रानी कुमारी, सरपंच, सरहंचिया, औराई
 
- रिपोर्ट - एम. अखलाक

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