सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना

LATEST:


गुरुवार, 30 मई 2013

ग्राम स्‍वराज की 'बेनजीर'



पंचायतीराज और महिलाएं - 1

इसे बिहार में पचास फीसद महिला आरक्षण का कमाल कहें या धीरे-धीरे मजबूत होती पंचायतीराज व्‍यवस्‍था का असर। सच्‍चाई यह है कि राजधानी पटना से 80 किलोमीटर दूर मुजफ्फरपुर जिले के गांवों की तस्‍वीर तेजी से बदल रही है। महिलाएं हर स्‍तर पर सशक्‍त हो रही हैं। नई इबारत गढ़ रही हैं। दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन रही हैं। कमजोर वर्ग की महिलाओं की तो पूछिए मत, 'बेनजीर' बनकर उभर रही है। इन महिलाओं ने अगर घर से बाहर कदम रखने का साहस जुटाया है तो इसके पीछे कहीं न कहीं पंचायतीराज व्‍यवस्‍था की अहम भूमिका है। अगर महिलाओं को आरक्षण नहीं मिलता, वह चुनाव लड़कर गांव की सत्‍ता नहीं संभालतीं, तो शायद अन्‍य महिलाएं भी जागरुक नहीं हो पातीं। पेश है तीन ऐसी गरीब ग्रामीण महिलाओं की कहानी, जिनसे हर कोई प्रेरणा लेने के लिए मजबूर हो जाएगा। - रिपोट : एम. अखलाक
पहली महिला जादूगरनी कंचन प्रिया

महज 19 वर्षीय कंचन प्रिया बिहार की पहली महिला जादूगरनी हैं। मुजफ्फरपुर जिले के सकरा प्रखंड स्‍थित सुस्‍ता मोहम्‍मदपुर गांव की रहने वाली इस दलित समुदाय की लड़की ने रिश्‍ते के भाई और पेशे से शिक्षक संजय कुमार चंचल से जादू की शिक्षा हासिल की। इसके बाद गांव की हमउम्र लड़कियों की मंडली बनाकर एक विशाल जादू टीम का गठन किया। गांवों में सीमित संसाधनों के बीच जादू शो करने लगी। गांव वालों को एक बेहतर मनोरंजन का माध्‍यम मिल गया। लेकिन शहरों तक पहुंच नहीं बना पा रही थी। वर्ष 2011 में गांव जवार जनसंगठन के संपर्क में आई। पहली प्रस्‍तुति खादी भंडार परिसर में आयोजित लोक जमघट नामक सांस्‍कृतिक कार्यक्रम में हुई। गांव जवार ने युद्धस्‍तर पर ब्रांडिंग की। उसके बाद शहर के सबसे बड़े आम्रपाली आडिटोरियम में एक महीने का जादू शो किया। गांव के लोगों से कर्ज लेकर। कंचन प्रिया वह तमाम जादू शो करती हैं जो बड़े बड़े जादूगर करते हैं। मसलन लड़की को हवा में उड़ा देना, आरी से दो हिस्‍सों में काट देना, लड़के को जानवर बना देना, तलवार को गले के आरपार कर देना, खाली हाथों से रुपये बरसाना, आंखों पर पट़्टी बांध कर शहर में बाइक चलाना आदि आदि। कंचन अपने दर्शकों से हर शो में कहती है कि यह कोई जादू टोना नहीं है, बल्‍िक हाथों की सफाई है। पहली बार शहर में शो करना था। घर वाले इजाजत नहीं दे रहे थे। परिजनों का कहना था कि अखबार में फोटो छपेगा, बदनामी होगी, शादी में दिक्‍कत आएगी। लेकिन गांव जवार ने परिजनों की काउंसलिंग की तो वे मान गए। गांवों में जहा संसाधनों की कमी के कारण बड़े जादूगर नहीं पहुंच पाते हैं, वहीं कंचन अपनी टीम के साथ लगातार गांवों में शो कर रही है।
राजकुमारी बन गई किसान चाची
खेती-किसानी सिर्फ मर्द ही नहीं औरतें भी कर सकती हैं, इस सच को साबित कर दिखाया है किसान चाची ने। जी हां, पूरा नाम है राजकुमारी देवी। मुजफ्फरपुर जिले के सरैया प्रखंड की माणिकपुर पंचायत के आनंदपुर गांव की रहने वाली किसान चाची की उम्र करीब 57 साल है। बचपन में अपने शिक्षक पिता के साथ खेत में जाती थीं तो बड़े भाई विरोध करते थे। फिर भी उन्हें पिता का साथ मिलता रहा और उस समय से ही कृषि में रुचि रखने लगीं। अब स्‍वयंसहायता समूह के माध्‍यम से महिलाओं को खेती-किसानी का प्रशिक्षण देती हैं। मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार सम्‍मानित कर चुके हैं। मीडिया के लिए सेलिब्रेटि बन चुकी हैं। 1974 में शादी हुई। 1989  में घर का बंटवारा हुआ। पति के हिस्से में तीन एकड़ जमीन आई। घर की हालत ठीक नहीं थी। राजकुमारी से  रहा नहीं गया। खेती में हाथ बंटाने लगीं। पति ने भी इसका विरोध किया। पति के घर से बाहर जाने के बाद खेतों में जाकर सब्जी उगाने लगीं। इसी बीच स्वयं सहायता समूह से भी जुड़ गईं। इतना ही नहीं साइकिल से गांव-गांव घूमकर महिलाओं को जोड़ने लगीं। गांव में साइकिल चलाती महिला को देखकर लोग तंज भी कसते, लेकिन राजकुमारी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा।  1996 में राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा के वैज्ञानिकों से संपर्क किया। उन्नत बीजों से पपीता, खीरा, कद्‌दू की खेती शुरू की। किसान चाची मैट्रिक पास हैं। एक दिन पता चला कि तंबाकू खाने से कैंसर होता है, उन्‍होंने पति को समझाया और हमेशा के लिए तंबाकू की खेती बंद करा दी। खुद जैविक खाद बनाती हैं और उपयोग भी करती हैं। आज उनकी माली हालत काफी अच्छी है। 2007 में कृषि विभाग की गेहूं की खेती पर किसान पाठशाला योजना में उन्हें माणिकपुर पंचायत के वीरपुर गांव में प्रशिक्षण देने का जिम्मा सौंपा गया था। इसी समय से लोग उन्हें किसान चाची कहकर संबोधित करने लगे।
ब्रांड बन गई हनी गर्ल
मुजफ्फरपुर जिले के बोचहा प्रखंड के पटियासी गांव में जन्मी अनीता बचपन में बकरी चराया करती थी। छोटे स्‍तर पर मधुमक्खी पालन का व्यवसाय शुरू कर इतिहास रच दिया। आज वह ब्रांड बन गई है। हर कोई उसे ‘हनी गर्ल’ के नाम से पुकारता है। उसकी सफलता की कहानी राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की चौथी कक्षा की पाठ्य पुस्तक में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। अपनी पढ़ाई का खर्च पूरा करने के लिए अनीता ने सबसे पहले बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। जब उच्च शिक्षा के लिए और अधिक पैसों की जरूरत पड़ी तो उसने मधुमक्खी पालन का व्यवसाय शुरू किया। अब पिता और भाई भी इस काम में हाथ बंटाते हैं। वर्ष 2002 में दो बक्से से मधुमक्खी पालन का कार्य शुरू किया था। आगे चलकर राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा से मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लिया। विश्वविद्यालय ने उन्‍हें सर्वश्रेष्ठ पालक का पुरस्कार भी दिया। वर्ष 2006 में उसे जोरदार शोहरत मिली। यूनिसेफ ने उसकी कहानी पर रिपोर्ट जारी की। अनीता की प्रेरणा से आज गांव की करीब सात सौ महिलाएं आधुनिक तरीके से मधुमक्‍खी पालन करने लगी हैं। खैर, खुशी की बात यह है कि इसी साल 29 मई को अनीता शादी के बंधन में भी बंध चुकी हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें