सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना

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शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

बदनाम बस्ती भी बन गई 'हस्ती'

स्मृति शेष : अब न होगा कोई दूजा जानकीवल्लभ सूरज एक है, चंदा एक है, जमीं व आसमां एक हैं। हम चाहें लाख इन जैसा कुछ और बना डालें, मगर इनका कोई और विकल्प नहीं हो सकता। आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री पर भी कुछ यही बातें अक्षरश: लागू होती हैं। उनके विराट व्यक्तित्व के आगे बहुत कुछ बौना दिखता है। महज गीत, कविता लेखन और पशु प्रेम तक ही वे नहीं सिमटे थे। कुछ और भी थे, जिसे महसूस करने की जरूरत है। आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री पहली ऐसी शख्सियत रहे हैं जिन्होंने अपना आशियाना देश की टॉप टेन बदनाम बस्तियों में शुमार मुजफ्फरपुर की तवायफ मंडी यानी चतुर्भुज स्थान में बसाया। काली कोठरी में सपरिवार रहते हुए भी उनका दामन हमेशा पाक रहा। महाकवि की यह इच्छाशक्ति यों ही नहीं थी। उसमें एक मैसेज था। समाज के लिए। लोगों के लिए। वंचितों, पीडि़तों को स्वीकार करने का आग्रह था। उन्हें समझने, महसूस करने और बदलने की अपील थी। तभी तो महाप्राण निराला से लेकर हरिवंश राय बच्चन तक बेझिझक उनके आशियाने में आया करते थे। लेकिन कभी किसी ने महाकवि से ठौर बदलने की गुजारिश नहीं की। हां, शहर के लोग भले ही तवायफ मंडी के नाम पर बिचकते रहे हों, आचार्यश्री के बहाने निराला निकेतन जाने में उन्हें कभी परेशानी महसूस नहीं हुई। आचार्य श्री ने वंचितों की बस्ती को अपना नाम दिया। आज भी उस बस्ती में रहने वाले चतुर्भुज स्थान या तवायफ मंडी की जगह आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री पथ लिखा करते हैं। स्कूल में बच्चों के दाखिले के दौरान भी यही पता होता है। मंडी आज भी कायम है। तवायफें अब भी मौजूद हैं। लेकिन इलाका आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री के नाम से जाना-पहचाना जाता है। एक और घटना 2002 की है। तब यहां तवायफ मंडी की रानी बेगम पहली बार वार्ड पार्षद चुनी गई थीं। मंडी के लोगों में उत्साह देखते ही बनता था। मीडिया मंडी की ओर भाग रहा था। आचार्य श्री ने फिर एक अनूठी पहल की, जिसमें वंचितों को गले लगाने का संदेश था। उन्होंने उसी निराला निकेतन में रानी बेगम को चांदी का मुकुट पहनाकर सम्मानित किया, जहां किसी जमाने में पृथ्वीराज कपूर, रामवृक्ष बेनीपुरी जैसे दर्जनों हस्तियां आचार्यश्री का आतिथ्य स्वीकार किया करते थे। क्या सचमुच कोई और ऐसा कर सकता है? किया किसी ने कभी ऐसा किया है? क्या हममें वो जज्बा है? जवाब ढूढ़ेंगे तो सिर्फ आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ही नजर आएंगे। बेशक कहने में कोई गुरेज नहीं कि अब न होगा दूजा जानकीवल्लभ। - एम. अखलाक (यह रपट दैनिक जागरण, मुजफ्फरपुर में बाटम छप चुकी है।)

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