सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना

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रविवार, 24 अक्तूबर 2010

नक्सलियों पर भारी पड़े वोटर

तिरहुत के नक्सल प्रभावित इलाकों में खूब पड़े वोट

मुजफ्फरपुर : दूसरे चरण के मतदान से दो दिन पहले शिवहर में बारूदी विस्फोट कर छह पुलिस कर्मियों को शहीद करने वाले नक्सलियों पर मतदान के दिन मतदाता भारी पड़ गए। नक्सलियों के गढ़ कहे जाने वाले अधिकतर विधानसभा क्षेत्रों में वोटरों ने बढ़-चढ़कर मताधिकार का प्रयोग किया। यह न सिर्फ लोकतंत्र के प्रति कायम विश्वास का संकेत है, बल्कि नक्सल आंदोलन की समीक्षा की ओर लोगों का इशारा भी है। अगर पिछले तीन विधानसभा चुनावों के वोट प्रतिशत पर गौर करें तो इस बार वोटरों का उत्साह 'बम-बमÓ बोल रहा है।सबसे पहले नजर डालते हैं शिवहर विधानसभा क्षेत्र पर। यहां फरवरी 2005 के चुनाव में 46।04 फीसदी वोटरों ने वोट डाला था। इसी साल जब अक्टूबर में जब दोबारा चुनाव हुआ तो ग्राफ गिरकर 45।47 पर आ गया। लेकिन, इस बार नक्सली घटना के बावजूद 50 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर सूबे को चौंका डाला है। नक्सली घटना के बाद सियासी गणितज्ञों को इस तरह के परिणाम की उम्मीद नहीं थी। इसी तरह सीतामढ़ी जिले के बेलसंड विधानसभा क्षेत्र में फरवरी 2005 में 47।04 और अक्टूबर में 46।55 फीसदी मतदान हुआ था। इस बार यह ग्राफ चढ़कर 48 फीसदी पर पहुंच गया है।उधर, मुजफ्फरपुर जिले के मीनापुर, पारू और साहेबगंज विधानसभा क्षेत्रों पर नजर डालें तो यहां भी नक्सलियों को मतदाता चुनौती देते ही नजर आए। पारू विधानसभा क्षेत्र में फरवरी और अक्टूबर 2005 में हुए दो चुनावों में क्रमश: 49।95 और 50.43 फीसदी मतदान हुआ था। इसबार यह आंकड़ा 52.2 प्रतिशत पहुंच गया है। कुछ यही हाल मीनापुर विधानसभा क्षेत्र का भी रहा। पिछले दोनों चुनावों में यहां क्रमश: 47.26 और 49.60 प्रतिशत मतदान हुआ था। इसबार उत्साहित वोटरों ने 53.72 फीसदी तक इस आंकड़े को पहुंचा दिया है। हां, साहेबगंज एक मात्र ऐसा क्षेत्र रहा है जहां इस बार थोड़ा ग्राफ गिरा है। गत दो चुनावों में यहां मतदान प्रतिशत 50.83 और 52.84 था। इस बार यह 52 फीसदी पर ही सिमट कर रह गया है। ये सभी विधानसभा क्षेत्र चुनाव आयोग की संचिकाओं में नक्सल प्रभावित माने गए थे। सो, यहां तीन बजे ही मतदान हो सका। यदि यहां पांच बजे तक मतदान होता तो कई और रिकार्ड टूट सकते थे।खैर, कई ऐसे विधानसभा क्षेत्रों ने भी इस बार रिकार्ड तोड़ा है जो नक्सल प्रभावित होने के बावजूद चुनाव आयोग के खाते में नहीं थे। इन्हीं में एक है बरूराज, जहां पिछले दो चुनावों में क्रमश: 48.3 व 48.45 फीसदी वोट डाले गए थे। इस बार यहां 53 फीसदी मतदान हुआ है। इसी तरह पूर्वी चंपारण जिले के पिपरा में इस बार दो 57 फीसदी वोट पड़े हैं। जबकि दो चुनावों में यहां क्रमश: 46.38 और 47.64 फीसदी ही वोट डाले गए थे। यही हाल मधुबन का भी रहा। यहां गत दो चुनावों में क्रमश: 44.42 और 47.98 प्रतिशत वोट डाले गए थे। इस बार 58 फीसदी लोगों ने वोट डाला है। वहीं ढाका में रिकार्ड तोड़ 61 फीसदी वोटिंग हुई है। जबकि दो चुनावों में यहां क्रमश: 42.43 और 44.38 फीसदी लोगों ने ही मतदान किया था। यही नहीं नवसृजित चिरैया में 61 और नरकटिया में 59 प्रतिशत मतदान की सूचना है। चौंकाने वाली बात यह है कि नक्सल प्रभावित होने के बावजूद यहां शाम पांच बजे तक न सिर्फ मतदान हुआ बल्कि शानदार वोटिंग भी हुई।

प्रस्‍तुति - एम. अखलाक

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