बिहार में चुनावी बिगुल बज चुका है और रफ्ता-रफ्ता सियासी सरगर्मियां परवान चढ़ रही हैं। इसी के साथ उत्तर बिहार की फिजां में तैरने लगी है जन संगठनों की आवाज, जो चुनावी मुद्दा बनने को बेकरार है और जो वर्षों से सियासी झांसा झेल रही है। अपनी मांगों के लिए जब-जब इन संगठनों ने नारे बुलंद किए, आंदोलन को आगे बढ़े, तब-तब इन्हें सहलाया गया, बहलाया गया। अब जबकि चुनाव सामने है और सियासी पार्टियां उनके मुद्दे-मांगों से मुंह मोड़े हुए है, ऐसे में संगठनों ने भी अपनी कमर कस ली है। इस बार वे अपने मुद्दे को गरम करने की फिराक में अभी से जुट गए हैं। आइए जानें किस संगठन का क्या है मुद्दा?
आरटीई कानून लागू हो : बिहार में शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) लागू करने की मांग को लेकर 'भूमिका विहार' आंदोलन चला रहा है। पिछले दिनों पटना और मुजफ्फरपुर में यह संगठन राजनीतिक दलों और प्रबुद्धजनों के साथ सम्मेलन आयोजित कर अपनी मांगों को उनके समक्ष रख चुका है। संगठन की मांग है कि सियासी दल इस मुद्दे को अपने चुनावी घोषणा पत्रों में शामिल करें। संगठन के अरुण कुमार सिंह कहते हैं कि सामाजिक मुद्दों से सियासी दलों का कोई नाता नहीं रह गया है। इस बार उनकी कोशिश होगी कि संगठन की मांग की ओर सियासी पार्टियां ध्यान दे और उसे अमल में लाने की भरपूर कोशिश करे।
सांस्कृतिक नीति जमीन पर उतरे : सूबे की सांस्कृतिक नीति 2004 को जमीन पर उतारने, लोक कलाओं व कलाकारों के संरक्षण के लिए अलग कला और कलाकार आयोग गठित करने, कलाकार नीति बनाने और सभी जिलों में कला प्रदर्शन के लिए नगर भवन व ऑडिटोरियम नि:शुल्क करने के लिए 'गांव जवार' पिछले एक साल से आंदोलन चला रहा है। यह संगठन भी पटना व मुजफ्फरपुर में सम्मेलन कर सियासी दलों से इन्हें चुनावी घोषणा पत्रों में शामिल करने की मांग कर चुका है। संगठन के डा. कौशल किशोर चौधरी कहते हैं कि पक्ष-विपक्ष की सियासत करने वाले नेताओं को इस बार संगठन के मुद्दों पर ध्यान देने के लिए मजबूर किया जाएगा। मुजफ्फरपुर थियेटर एसोसिएशन भी पिछले दिनों चुनावी घोषणा पत्रों में सांस्कृतिक सवालों को स्थान देने की मांग को लेकर विचार गोष्ठी आयोजित कर चुका है। 'इप्टा' भी इन्हीं सवालों को लेकर शहर में धरना-प्रदर्शन कर चुका है। उधर, 'बेटी बचाओ आंदोलन' ट्रैफिकिंग की रोकथाम के लिए ठोस पहल करने व नाच पार्टियों में काम करने वाले कलाकारों को मजदूर का दर्जा देने की कई वर्षों से वकालत कर रहा है।
मैथिली की आवाज भी सुनिए : मिथिलांचल में 'विद्यापति सेवा संस्थान' प्रबुद्धजनों की बैठक में प्रस्ताव पारित कर सियासी दलों से मैथिली भाषा में ही बैनर-पोस्टर व चुनावी घोषणा पत्र जारी करने की मांग कर चुका है। संस्था के सदस्यों को कहना है कि इस बार यदि ऐसा नहीं हुआ तो सियासी दलों को संगठन का विरोध झेलना होगा।
मिथिला राज्य की भी है मांग : अखिल भारतीय मिथिला पार्टी पिछले कई वर्षों से अलग मिथिला राज्य बनाने की मांग कर रही है। नेतागण भरोसा देते हैं, बैक से समर्थन की बात करते हैं, पर जब चुनाव आता है तो मुद्दा गौण हो जाता है। संगठन के पदाधिकारी इस साफ आश्वासन के बाद भी नेताओं को वोट देने का मन बना रहे हैं। इसके लिए वे जागरुकता अभियान भी चलाने की सोच रहे हैं।
बज्जिकांचल भी है आवाज : बज्जिकांचल विकास पार्टी भी वर्षों से अलग बज्जिकांचल राज्य बनाने की मांग को लेकर संषर्घरत है। इस संगठन के कार्यकर्ता तो अब चुनावी मैदान में उतरकर जन समर्थन बटोरने लगे हैं। इस बार भी वे अपनी आवाज जनता और सियासत तक पहुंचाने की जुगत में हैं।
रिपोर्ट - एम. अखलाक
हमारी कहानी
8 वर्ष पहले
sabse achhi baat yah ki aapka yah stambh dainik akhbaron men jagah pa gaya. aajkal jan sangathno ki awaz koi uthata kahan hai. - Bhawesh
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