उनका वेश बिल्कुल साधारण होता है। पहली नजर में कोई उन्हें देहाती या फेरी वाले से ज्यादा नहीं समझ सकता। मगर, कंधे पर लटके उनके झोलों में चोरी का माल भरा होता है। एक से एक लुभाने वाला असली सामान। जी हां, ब्रांडेड कंपनियों के कपड़े, साडिय़ां, चादर, घड़ी, रेडियो, इलेक्ट्रानिक सामान आदि। इनकी कीमत तो सुनकर तो लोग ललचा ही जाते है। बाजार मूल्य से काफी कम यानी सौ का माल 40 में। कम कीमत का राज पूछने पर ताल ठोंककर मगर आहिस्ते से कहते है- चोरी का माल है बाबू, चोरी का, ले लीजिए, वर्ना ऐसा माल और इस कीमत पर कैसे मिलेगा। कहां से चोरी करते हो, पूछने पर कन्नी काट जाते है, लेकिन इतना जरूर कहते हैं कि हजार रुपये में भी नहीं मिलने वाले ये कपड़े, दो-चार सौ में दे रहा हूं, ले लीजिए।
मुजफ्फरपुर की किस गली में ये लोग कब और किस रोज दिखेंगे, यह कुछ तय नहीं होता, मगर जब भी ये जिस भी गली में दिखते है अकेले कभी नहीं होते। कम से कम दो की संख्या में धंधे को चलाने वालों में एक कैरियर की भूमिका में होता है। खासियत यह कि ये सामान खरीदने की ज्यादा जिच नहीं करते। आपने इनके सामान की खरीद में रुचि दिखायी तो रुके वर्ना तत्काल आगे बढ़ लेते है। गलियों में फेरे लगाकर चोरी का माल बेचने वालों में चावल और गेहूं की भी बिक्री की बात सामने आयी है। शुद्ध देहाती दिखने वाले तीन-चार लोग इकट्ठे गलियों में घूमते है और ग्र्रिल खटखटा कर चावल और गेहूं की खरीद की दरियाफ्त करते है। खुलेआम बताते है कि खांटी मंसूरी चावल छह सौ से सात सौ रुपये प्रति क्विंटल लेना है तो बोलिये। इन घुमक्कड़ों के पास माल नहीं होता। जब आप हामी भरते है तो इनमें से एक छिटक जायेगा और दस-पंद्रह मिनटों के बाद किसी साइकिल या कंधे पर बोरे को ढोकर आपके दरवाजे पर चावल डाल देगा। एक तौलता है, दूसरा पैसा लेता है, बाकी दो इधर-उधर की निगरानी करता है। चोरी का ही सही, ये अपना कारोबार करने में सफल है और सबकुछ खुलेआम अंजाम देकर सकुशल निकल जाते है।
जानकारों का कहना है कि शहर की आवासीय कालोनी वाली गलियों में फेरे लगाकर चोरी का माल बेचने वाले अधिकतर ट्रकों के ड्राइवर व खलासी होते है। अपने ट्रकों पर लदे माल को चोरी गया बताकर बाद में गलियों में घूमकर वे उसे बेच देते है। इन पर अंकुश लगाना सरल काम नहीं है। सूत्रों का यह भी कहना है कि ब्रांडेड कंपनियों का माल चुराने वाला आर्गनाइज्ड रैकेट है, जो बाद में कैरियर को उसे खपाने के लिए शहरों की गलियों में भेज देता है। ये चोरियां बड़े पैमाने पर और बड़े शहरों में अंजाम दी जाती है। सूत्र बताते है कि गलियों में फेरी लगाकर चोरी का माल बेचने वालों की सक्रियता फिलहाल मुजफ्फरपुर, दरभंगा, समस्तीपुर, मोतिहारी और धीरे-धीरे कालोनी के रूप में विकसित हो रहे उत्तर बिहार के शहरों में ज्यादा है। उधर, बात चाहे प्रमंडलीय मुख्यालय वाले शहरों मुजफ्फरपुर व दरभंगा की हो या समस्तीपुर व मोतिहारी की, कहीं भी इन चोरों पर अंकुश लगाने की कोई पुलिसिया कार्ययोजना सामने नहीं आयी है। पुलिस की नजरों से ओझल इनका धंधा बदस्तूर चल रहा है। बाजार पर नियंत्रण रखने वाले अफसर तो वैसे भी कहीं नजर नहीं आते। उनसे इस पर नियंत्रण की बात ही बेमानी है। रिपोर्ट :- प्रमोद मिश्र, मुजफ्फरपुर से
मतलब का 'मतलब' जानते हैं क्या?
7 वर्ष पहले