सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना

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गुरुवार, 12 सितंबर 2013

अनुदान का खतरनाक खेल

हिन्दुस्तानी सियासत में नकद अनुदान के मुद्दे पर इन दिनों घमासान का आलम है। सबसे बुजुर्ग पार्टी कांग्रेस का मानना है कि नव उदारवाद के इस दौर में नकद अनुदान के सहारे ही समाज के कमजोर तबके की स्थिति सुधारी जा सकती है। जबकि, मुख्य विपक्षी भाजपा और उसके सहयोगी संगठन इसे कांग्रेस की चुनावी नौटंकी बता रहे हैं। वे कहते हैं कि नकद अनुदान का लालच दे कर कांग्रेस गांव-गांव में कार्यकर्ता बनाने की कोशिश कर रही है। इस जुबानी जंग और मतभेद के बीच सबसे बड़ी समानता यह है कि नव उदारवाद समर्थक ये दोनों पार्टियां कम से कम अनुदान को जायज मान रही हैं। यानी गरीबों को अनुदान दिए जाने के खिलाफ नहीं हैं।
मेरी राय इनसे इतर है। मेरी समझ से देश में 'अनुदान' एक खतरनाक खेल बन चुका है। इसके सहारे नव उदारवाद की वकालत करने वाली पार्टियां सियासी रोटी सेंक रही हैं। साथ ही वह पूंजीवाद को मजबूती देना चाह रही हैं। इस गहरी चाल से अपना देश कई अर्थों में कमजोर होता जा रहा है। हर गांव और हर आदमी अब अनुदान के खेल में उलझा हुआ है। वह संघर्ष करना और हक की लड़ाई लडऩा भूलता जा रहा है। किसी तरह अनुदान मिल जाए, वह इसी सोंच में डूबा रहता है। वहीं, अनुदान के इस नापाक खेल से पंचायत स्तर पर भ्रष्टाचार की नींव मजबूत हुई हैं।
बिहार में डीजल अनुदान इसका जीवंत उदाहरण है। आप इसके सहारे अनुदान के खेल को आसानी से समझ सकते हैं। एक किसान जिसके खेत बिजली और पानी के अभाव में सूख जाते हैं। फसलें चौपट हो जाती हैं। प्राय: हर साल ऐसा होता है। लेकिन वह समस्या के स्थाई निदान के लिए व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई नहीं लडऩा चाहता है। संघर्ष की बातें नहीं करना चाहता है। नहर में पानी और खेती के लिए 24 घंटे बिजली देने की मांग सरकार से नहीं करता है। वह नुकसान के बदले सिर्फ मुआवजे की मांग करता है। सरकार भी अनुदान देने की घोषणा कर उन्हें उलझा देती हैं। फिर अनुदान का सियासी खेल शुरू होता है। किसान अनुदान के लिए पंचायत से प्रखंड तक चक्कर लगाता है। दलालों की मदद लेता है। अंत में कुछ रुपये उसके हाथ लगते हैं, और वह सारे गम भूल जाता है। हर साल यही पटकथा दोहराई जाती है।
दरअसल, पूंजीवाद समाज के एक तबके को पंगु बनाकर रखना चाहता है। समवेत विकास में उसकी कोई आस्था नहीं होती। 1990 से पूर्व देश में किसान जिस मर्दाना तेवर के साथ हक के लिए लड़ते थे, व्यवस्था परिवर्तन की बात सोचते थे, वह अब कहां दिखता है? कई छोटी पार्टियों के तेवर अब कमजोर पड़ते जा रहे हैं, क्योंकि पूंजीवाद जनसंघर्षों को धीरे धीरे निगल रहा है। दरअसल, अनुदान वह पूंजीवादी चारा है जिसके सहारे आसानी से व्यवस्था को पंगु बनाया जा सकता है। यह लोकतंत्र को मजबूत करने वाले जनप्रतिरोध को कमजोर ही नहीं पूरी तरह अपाहिज बना देता है। हर क्षेत्र में अनुदान, बात बात में अनुदान कहीं न कहीं भारतीय लोकतंत्र के लिए घातक है। अपने देश व राज्य में कायदे से बुनियादी ढांचा को और मजबूत और बेहतर करने की जरूरत है, ताकि हर कोई साधन संपन्न हो सके। किसी भी व्यक्ति को अनुदान देने और लेने की जरूरत नहीं पड़े। (सोपान स्‍टेप में प्रकाशित)
- एम. अखलाक

उखड़े खंभे

कहानी - हरिशंकर परसाई  
नाट्य अनुवाद व निर्देशन - एम. अखलाक 
गीत - जयराम शुक्‍ल, अदम गोंडवी व अज्ञात
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सूत्रधार का नाचते हुए मंच पर प्रवेश
सूत्रधार और कोरस मंडली -
नहीं सुनाएं भजन कीर्तन नहीं गान व तान,
नहीं दिखाएं नाटक वाटक न कोई मंच मचान।
हम तो सच बतलाने आए
सच ही सच दिखलाने आए,
सच कहना जो पागलपन है
समझो हम पगलाने आए।
(नाल पर थाप के साथ अखबार बेचने वाले की इंट्री होती है।) 
अखबारवाला -
आज की ताजा खबर, आज की ताजा खबर। मनरेगा में छह सौ करोड़ का घोटाला।
आज की ताजा खबर, आज की ताजा खबर। सूबे में शराब पीने से 50 लोगों की मौत।
आज की ताजा खबर, आज की ताजा खबर। अधिकारी का बेटा घुस लेते गिरफ्तार।
आज की ताजा खबर, आज की ताजा खबर (धीरे-धीरे स्‍वर कम होता चला जाता है।) 
(मंच पर लोग बातचीत कर रहे हैं।)
आदमी एक - अरे भइया, पूछिए मत, किसी भी दफ्तर में चले जाइए, बिना रिश्‍वत काम नहीं होता।
आदमी दो - हां, कल प्रखंड कार्यालय में जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए गया था, वहां भी कर्मचारी घूस मांग रहे थे।
आदमी तीन - हां भइया, बात तो आप बिल्‍कुल ठीक कह रहे हैं। कोई किसी की सुनने वाला नहीं है।
आदमी चार - आप नहाने की बात कह रहे हैं। यहां तो पीने के लिए भी पानी नसीब नहीं है। तीन दिन से नहीं नहाए हैं। देह में खुजली हो रही है।
आदमी पांच - अब देखिए ना, गलत बिजली बिल भेज दिया। जब सुधरवाने के लिए बिजली आफ‍िस गए तो वहां भी कर्मचारी घूस मांगने लगे।
आदमी छह - यही हाल तो रेलवे स्‍टेशन पर भी है। बिना दलाल के टिकट तक नहीं मिलता।
महिला एक - अरे प्रीति जानती हो, मुजफ्फरपुर में दो महीना से एक लड़की गायब है। पुलिस नहीं खोज पा रही है।
महिला दो - हां दीदी, कानून व्‍यवस्‍था की स्थिति बड़ी खराब है। गांव गांव में शराब बिक रहा है। लड़कियों का घर से निकलना मुश्किल हो गया है।
 
(मुनादी की आवाज सुनाई देती है, सभी चौंककर देखते हैं। उसके पीछे पीछे जाते हैं।)
 
मुनादी वाला - सुनो सुनो सुनो....। राजा का हुक्‍म सुनो...।  राजा ने कहा है, राज्‍य के सभी मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भे से लटका दिया जाएगा।
(मुनादी वाला प्रस्‍थान कर जाता है। मंच पर भीड़ है। कोलाहल है। एक बिजली खंभे के नीचे लोग आपस में बातचीत कर रहे हैं।)
 
भीड़ - वाह भइया, अब जाके राजा जी ने सही कदम उठाया है।
भीड़ - हां भइया, राजा का हुक्‍म बिल्‍कुल सही है।
भीड़ - हां हां, मुनाफाखोरों ने जीना हराम कर दिया है।
भीड़ - भइया, यहां तो बस कहने को सरकार है।
भीड़ - तब क्‍या, चारों ओर भ्रष्‍टाचार का बोल-बाला है।
भीड़- मुखिया से मंत्री तक, कलकटर से चपरासी तक बिना घूस लिए काम नहीं करते।
भीड़ - अरे भाई, तभी तो राजा ने मुनाफाखोरों को बिजली के खंभे से लटकाने की घोषणा की है।
भीड़ का समवेत स्‍वर - प्रेम से बोलो खंभा जी महाराज की जय।
(देखते-देखते लोग बिजली के खंभे की पूजा करना शुरू कर देते हैं। आरती उतारी जाती है।)
(नाल पर थाप के साथ परिवेश बदलता है।
शाम का समय। लोग बेचैन हैं।)
आदमी - अरे मुनिलाल, देख तो घड़ी में क्‍या बज रहे हैं।
आदमी - पांच बजने वाले हैं, भइया।
आदमी - अरे अभी तक कोई आया नहीं।
आदमी - हां, मुनाफाखोर कब टांगे जाएंगे समझ में नहीं आता।
आदमी - अरे, हम तो यही देखने के लिए आज काम पर भी नहीं गए। लगता है दिन बेकार जाएगा।
आदमी - कहीं, मुनादी वाला मजाक तो नहीं कर रहा था।
आदमी - चुप कर, राजा का आदमी कभी झूठ बोलेगा। साले को राजा जी फांसी पर चढ़ा देंगे।
आदमी - चलो, राजा के पास चलते हैं।
भीड़ - हां, हां चलो भाइयों, चलो।
(कुर्सी पर राजा विरजमान हैं। भीड़ खड़ी है।)
गीत --- 
रउरा शासन के नइखे जवाब भाई जी,
राउर कुर्सी से झरेला गुलाब भाई जी।
 
आदमी - महाराज, आपने तो कहा था कि मुनाफाखोर बिजली के खम्भे से लटकाये जाएंगे।
आदमी - महाराज, खम्भे तो वैसे ही खड़े हैं।
आदमी -  और मुनाफाखोर स्वस्थ और सानन्द हैं।राजा - कहा है तो उन्हें खम्भों पर टाँगा ही जाएगा।
आदमी - महाराज, लेकिन ऐसा कब होगा।
राजा - धैर्य रखो, थोड़ा समय लगेगा।
आदमी - महाराज, लेकिन कब तक। 
राजा - टाँगने के लिये फन्दे चाहिये। मैंने फन्दे बनाने का आर्डर दे दिया है। उनके मिलते ही सब मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भों से टाँग दूँगा।
आदमी - पर, सुना है महाराज, फन्दे बनाने का ठेका भी एक मुनाफाखोर ने ही लिया है।
राजा - तो क्या हुआ? उसे उसके ही फन्दे से टाँगा जाएगा।
आदमी - पर वह तो कह रहा था कि फाँसी पर लटकाने का ठेका भी मैं ही ले लूँगा।
राजा - नहीं, ऐसा नहीं होगा। फाँसी देना निजी क्षेत्र का उद्योग अभी नहीं हुआ है।
आदमी - (समवेत स्‍वर में)  तो कितने दिन बाद वे लटकाए जाएंगे।
राजा - आज से ठीक सोलहवें दिन वे तुम्हें बिजली के खम्भों से लटके दीखेंगे।
(नाल पर थाप के साथ सूत्रधार आता है। दृश्‍य बदलता है। मंच से राजा की कुर्सी हट हो जाती है। लोग दिन गिनने लगे।)
सूत्रधार -
नहीं सुनाएं भजन कीर्तन नहीं गान व तान,
नहीं दिखाएं नाटक वाटक न कोई मंच मचान।
हम तो सच बतलाने आए
सच ही सच दिखलाने आए,
सच कहना जो पागलपन है
समझो हम पगलाने आए।
 
 
(नाल पर थाप के साथ सीन बदलता है। सुबह का समय है। लोग मुंह हाथ धो रहे हैं।) 
 
 
आदमी - अरे यह क्‍या हुआ। बिजली के सारे खम्भे उखड़े पड़े हैं।
आदमी - हां, रात न आँधी आयी न भूकम्प आया, फिर ये खम्भे कैसे उखड़ गये!
आदमी - आज तो सोलहवा दिन है। राजा ने आज ही तो लटकाने की बात कही थी।
आदमी - हां, लेकिन अब क्‍या होगा।
आदमी - अरे वो देखो, खंभे के पास मजदूर खड़ा है। चलो उससे पूछते हैं।
आदमी - अरे भाई, यहां के बिजली के खंभे कहां गए।
मजदूर - मजदूरों से रात को ये खम्भे उखड़वाये गये हैं।
आदमी - अरे, ऐसा कैसे हो सकता है। तुम्‍हे पता है आज खंभों पर मुनाफाखोर लटकाए जाने वाले थे। राजा ने हुक्‍म दिया था।
आदमी - अरे, पकड़ कर ले चलो इसे राजा के पास।
 
(दृश्‍य बदलता है। राजा का दरबार। लोग मजदूर के साथ उपस्थित हैं।)
 
गीत --- 
रउरा शासन के नइखे जवाब भाई जी,
राउर कुर्सी से झरेला गुलाब भाई जी।

आदमी - महाराज, आप मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भों से लटकाने वाले थे, पर रात में सब खम्भे उखाड़ दिये गये। हम इस मजदूर को पकड़ लाये हैं। यह कहता है कि रात को सब खम्भे उखड़वाये गये हैं।
राजा - (मजदूर से) क्यों रे, किसके हुक्म से तुम लोगों ने खम्भे उखाड़े?”
मजदूर - सरकार, ओवरसियर साहब ने हुक्म दिया था।
राजा - ओवरसियर को बुलाया जाए।
अरदली - ओवरसियर हाजिर हो। 
राजा - क्यों जी तुम्हें मालूम है, मैंने आज मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भे से लटकाने की घोषणा की थी?
ओवरसियर - जी सरकार!
राजा - फिर तुमने रातों-रात खम्भे क्यों उखड़वा दिये?
ओवरसियर - सरकार, इंजीनियर साहब ने कल शाम हुक्म दिया था कि रात में सारे खम्भे उखाड़ दिये जाएं।
राजा - इंजीनियर को बुलाया जाए।
अरदली - इंजीनियर हाजिर हो।
इंजीनियर - सरकार, बिजली इंजीनियर ने आदेश दिया था कि रात में सारे खम्भे उखाड़ देना चाहिये।
राजा - बिजली इंजीनियर को बुलाया जाए।
अरदली - बिजली इंजीनियर हाजिर हो।
बिजली इंजीनियर - (हाथ जोड़कर) सेक्रेटरी साहब का हुक्म मिला था।
राजा - सेक्रेटरी को बुलाया जाए।
अरदली - सेक्रेटरी हाजिर हो।
राजा - खम्भे उखाड़ने का हुक्म तुमने दिया था।
सेक्रेटरी - जी सरकार! मैंने।
राजा - यह जानते हुए भी कि आज मैं इन खम्भों का उपयोग मुनाफाखोरों को लटकाने के लिये करने वाला हूँ, तुमने ऐसा दुस्साहस क्यों किया।
सेक्रेटरी - साहब, पूरे शहर की सुरक्षा का सवाल था। अगर रात को खम्भे न हटा लिये जाते, तो आज पूरा शहर नष्ट हो जाता!
राजा - यह तुमने कैसे जाना? किसने बताया तुम्हें?
सेक्रेटरी - मुझे विशेषज्ञ ने सलाह दी थी कि यदि शहर को बचाना चाहते हो तो सुबह होने से पहले खम्भों को उखड़वा दो।
राजा - कौन है यह विशेषज्ञ? भरोसे का आदमी है?
सेक्रेटरी - बिल्कुल भरोसे का आदमी है सरकार। घर का आदमी है। मेरा साला होता है। मैं उसे हुजूर के सामने पेश करता हूँ।
अरदली - विशेषज्ञ हाजिर हो।
विशेषज्ञ - सरकार, मैं विशेषज्ञ हूँ और भूमि तथा वातावरण की हलचल का विशेष अध्ययन करता हूँ। मैंने परीक्षण द्वारा पता लगाया है कि जमीन के नीचे एक भयंकर प्रवाह घूम रहा है। मुझे यह भी मालूम हुआ कि आज वह बिजली हमारे शहर के नीचे से निकलेगी। आपको मालूम नहीं हो रहा है, पर मैं जानता हूँ कि इस वक्त हमारे नीचे भयंकर बिजली प्रवाहित हो रही है। यदि हमारे बिजली के खम्भे जमीन में गड़े रहते तो वह बिजली खम्भों द्वारा ऊपर आती और उसकी टक्कर अपने पावरहाउस की बिजली से होती। तब भयंकर विस्फोट होता। शहर पर हजारों बिजलियाँ एक साथ गिरतीं। तब न एक प्राणी जीवित बचता, न एक इमारत खड़ी रहती। मैंने तुरन्त सेक्रेटरी साहब को यह बात बतायी और उन्होंने ठीक समय पर उचित कदम उठाकर शहर को बचा लिया।
समवेत स्‍वर - बाप रे, चलो अच्‍छा हुआ। जान बची।
राजा - तो भाइयो, अब आप ही बताइए, ऐसी स्थिति में क्‍या किया जाए।
समवेत स्‍वर - कोई बात नहीं महाराज। प्रजा आपके साथ है। प्रजा आपके साथ है।
(भीड़ धीरे धीरे प्रस्‍थान कर रही होती है तभी...)
विशेषज्ञ - तो महाराज देखी आपने मेरी विशेषज्ञता। आखिर आपके राज्‍य का विशेषज्ञ हूं। आपका खाता हूं तो आपका गाना ही पड़ेगा।
राजा - शाबाश। बहुत अच्‍छा किया। तुम्‍हे जरूर इनाम मिलेगा।
 
(भीड़ राजा व विशेषज्ञ की बात सुनकर चौंक जाती है। लोगों के चेहरे के भाव बदल जाते हैं। सीन फ्रीज हो जाता है।)
 
सूत्रधार - दोस्‍तों, देखा आपने। यह सत्‍ता का असली चेहरा है। लोग अब राजा के हुक्‍म और मुनाफाखोरों को भूल गए हैं। खबर है कि मुनाफाखोरों ने इस एवज में बड़ी रकम चुकाई है। सेक्रेटरी की पत्नी के नाम- २ लाख रुपये, श्रीमती बिजली इंजीनियर के नाम १ लाख, श्रीमती इंजीनियर के नाम १ लाख, श्रीमती विशेषज्ञ के नाम २५ हजार, श्रीमती ओवरसियर के नाम ५ हजार रुपये बैंक खातों में जमा करा दिए गए हैं।
 
हां, ‘मुनाफाखोर संघ’  ने ‘धर्मादा’ खाते में भी दान पुण्‍य किया है। कोढ़ियों की सहायता के लिये २ लाख, विधवाश्रम के लिए १ लाख, क्षय रोग अस्पताल के लिए १ लाख, पागलखाने के लिए २५ हजार, अनाथालय के लिए ५ हजार और तवायफों के कल्‍याण के लिए दस हजार रुपये दान स्‍वरूप दिया है।
 
जाइए, अब आप भी विश्राम कीजिए। एक मिनट- लेकिन सोचिएगा, यह व्‍यवस्‍था कैसे बदलेगी।
 
गीत -
जितने हरामखोर थे कुर्बो जवार में
प्रधान बन के आ गए अगली कतार में।
काजू भूनी प्‍लेट में विस्‍की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में।।
 
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समाप्‍त
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