सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना

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गुरुवार, 3 सितंबर 2009

बिहार पुलिस की करतूतें

यह वाक्या है एक जुलाई 2009 की। करीब दोपहर के वक्त बिहार के बेतिया जिले में एक कुख्यात अपराधी पुलिस के हत्थे चढ़ गया। शिनाख्त हुई राजेश यादव उर्फ मुलायम के रूप में। पता-ठिकाना निकला कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का मांझीविशुनपुरा गांव। पुलिस के मुताबिक यह अपराधी बेतिया नगर में किसी घटना को अंजाम देने की नीयत से पहुंचा था, तभी खुफिया सूचना मिली और पुलिस बलों के साथ छापेमारी कर पुलिस निरीक्षक सह नगर थानाध्यक्ष संजय कुमार झा ने इसे बैंक आफ बड़ौदा के पास से गिरफ्तार कर लिया।गिरफ्तार अपराधी के कुख्यात होने के कारण मीडिया वाले भी सक्रिय हो गये। शाम करीब चार-पांच बजे जिले के पुलिस कप्तान ने गिरफ्तार राजेश यादव उर्फ मुलायम का आपराधिक इतिहास जारी किया। फैक्स से भेजे गये इस आपराधिक इतिहास के सातवें बिन्दु पर मीडिया वालों की नजर ज्यों ही पड़ी, सभी चौंक गये, सन्नाटे में आ गये। पुलिस महकमे ने लिखा था-''तहलका डॉट कॉम, नोएडा के संपादक तरूण तेजपाल की हत्या में अवधेश त्यागी के साथ (राजेश यादव उर्फ मुलायम) संलिप्त था। मीडिया वाले थोड़ी देर ऊहापोह की स्थिति में रहे। क्या यह खबर बनती है? क्या इस एंगल से खबर लिखी जाये? जितनी मुंह उतनी बातें। अंतत: किसी छोटे-बड़े अखबार ने इस खबर को प्रकाशित करना मुनासिब नहीं समझा, क्योंकि इससे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासनिक पुलिस की कार्यशैली की पोल खुल जाती। और पोल खुलने का मतलब 'धंधा' (विज्ञापन कारोबार, पुलिस के साथ पत्रकारों की दलाली) चौपट होना।मीडिया वालों ने थोड़ी देर बाद एसपी को फोन मिलाकर बताया कि तरूण तेजपाल देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। वह अभी जिंदा हैं। उनकी कोई हत्या नहीं हुई है। उन्हें बच्चा-बच्चा नाम से जरूर जानता है। फिर क्या था एसपी के कान खड़े हो गये। उन्होंने मीडिया वालों से कहा- कृपया खबर में इसका जिक्र न करें। और मीडिया वालों ने जिक्र नहीं किया।इस वाक्या से अब असल सवाल यह उठता है कि एसपी ने आपराधिक रिकार्ड बनाने वाले कर्मचारी को दंडित क्यों नहीं किया? आखिर किसके आदेश से यह रिकार्ड तैयार कराया गया? आखिर पुलिस लापरवाही क्यों करती है? क्या कुख्यात अपराधी राजेश यादव उर्फ मुलायम से जुड़े जो रिकार्ड में 33 आरोप लगाये गये हैं, वह सभी सही हैं या उनमें भी फर्जीवाड़ा है? आदि आदि।बहरहाल, इस खबर को रिपोर्ताज डाट ब्लागस्पाट डाट कॉम पर जब पोस्ट किया गया तो करीब एक सौ से ज्यादा नेटयूजरों ने ब्लागवाणी पर न सिर्फ पढ़ा, बल्कि अपनी प्रतिक्रियाएं भी व्यक्त की। पेशे से वकील और राजस्थान कोटा के रहने वाले दिनेश द्विवेदी ने कहा- जय हो बिहार पुलिस की!!!। इसी तरह दिल्ली के रहने वाले इरफान ने कहा- हम नहीं सुधरेंगे, चाहें जितने जनता दरबार लगा लें नीतीश बाबू। कनाडा में रह रहे जबलपुर के समीर लाल ने कहा- अफसोसजनक। कानपुर उत्तर प्रदेश के अनूप शुक्ल ने अपनी प्रतिक्रिया कुछ इस तरह व्यक्त की- बिहार पुलिस जिन्दाबाद! तो अविनाश वाचस्पति ने कहा- बिहार पुलिस से बचकर रहने में भलाई है, वैसे यहां के नेता ही कौन से कम हैं। यानी सबने पुलिस की कार्यशैली को जमकर कोसा।बिहार में पुलिसिया कार्यशैली का दूसरा नमूना मुजफ्फरपुर जिले में देखने को मिला। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान देवरिया थाना के धरफरी गांव में वोटिंग कर लौट रहे मां, बेटा और चाचा को पुलिस ने पकड़ लिया। पकड़े गये लोगों पर आरोप क्या थे किसी को मालूम नहीं। चुनाव खत्म होने के बाद शाम को पैट्रोलिंग पार्टी लौट रही थी। इसी बीच नक्सलियों ने एक पुल के पास बम विस्फोट कर चुनावकर्मियों को मार डाला। तीन लोगों की जानें गयी और पुलिस बौखला गयी। पुलिस ने आव देखा न ताव पहले से पकड़े गये मां, बेटा और चाचा को नक्सली घोषित कर जेल भेज दिया। मीडिया वालों ने जब एसपी सुधांशु कुमार से पूछा- यह लोग तो पहले से गिरफ्तार थे? इन्हें आप नक्सली कैसे घोषित कर रहे हैं? एसपी ने कहा- यार छोड़ो इन बातों को, बस लिख दो यही नक्सली थे। मीडिया में यह बात आयी लेकिन दबी जुबान से। किसी भी अखबार ने खुलकर इस पर नहीं लिखा। सवाल उठता है कि जब नक्सलियों ने चुनाव का बहिष्कार कर रखा था, और यदि पकड़े गये मां, बेटा और चाचा नक्सली थे! तो मतदान करने क्यों गये? दूसरी बात, नक्सली बम धमाके से पहले ही जब नक्सली मानकर तीनों पकड़ लिये गये थे तो पुलिस बम विस्फोट को नाकाम क्यों नहीं कर पायी? आपको जानकर हैरत होगा कि पुलिस ने इस मामले में 25 पिछड़ी जाति के लोगों को नक्सली घोषित कर जेल भेजने का संकल्प लिया है। इनमें करीब एक दर्जन जेल भेजे जा चुके हैं। यूं तो पुलिस यह सब अपनी वर्दी की लाज बचाने के लिए कर रही है। लेकिन हकीकत यही है कि वह जिले में दलितों, पिछड़ों, महादलितों को नक्सली बना रही है!एक और कहानी है माता सीता की जननी भूमि सीतामढ़ी जिले की। यहां पिछले दिनों पथ निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता की मौत हो गयी। कुछ लोग कहते हैं उन्होंने समाहरणालय की छत से कूदकर आत्महत्या कर ली! लेकिन हकीकत कुछ और है। सूबे के अभियंता संगठनों का आरोप है कि योगेन्द्र की हत्या की गयी और इसमें यहां के एसपी छत्रनील सिंह भी संलिप्त हैं! यह कितना सच है, यह खुलासा तो सीबीआई जांच पूरी होने के बाद ही होगा, लेकिन इतना सच जरूर है कि पुलिस यहां भी संदेह के घेरे में है।
रिपोर्ट :- एम. अखलाक

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